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(३८) नाम स्थापना निक्षेपमें विशेष. नाम, सो-नाम निक्षेप, लिखाथा । और मूल सूत्रकारने-जीवादिकमें-नाम निक्षेप, करना कहा । और शास्त्रकारके लक्षणसें-तीन प्रकारका नाम निक्षेप ' है । सो अब विचार यह है कि-गूजरका पुत्रमें जो 'इंद्रपदका निक्षेप है, सो । और मिशरी नामकी कन्यामें-मिशरी पदका निक्षेप है सो । क्या ? कुछ आकारवाले, और मनुष्यपणेका जीवके गुणवाले, नहीं है ? जो आकार रहित, और गुण रहितवाला, नाम निक्षेपमें डालती है ? इस वास्त दृढनीजीका मन कल्पित ' नाम निक्षेप' ही निरर्थक है ।। परंतु सूत्रकारका अ भिमायसें-जीवादिकमें । और लक्षणकारके अभिप्रायसे-पर्यायका अनभिधेयरूप, जो दूसरा प्रकारका नाम निक्षेप है, सो । गूजरके पुत्रमें तो-इंद्रपदका, और मिशरी नामकी कन्यामें-मिशरीपदका निक्षेप, सदाही सार्थकरूप ही है । इसी वास्ते हम कहते कि-'निक्षे पोंका अर्थ क्या है, सो यह ढूंढनी समजाही नहीं है. ॥
॥ इति 'प्रथम निक्षेप "विशेष समीक्षा ॥
॥ अथ 'द्वितीय निक्षेप ' विशेष समीक्षा. ॥ ढूंढनीजी-अपणे लक्षणमें-वस्तुका आकार, और नाम सहित, और गुण रहित सो- स्थापना निक्षेप, लिखती है । और मूल सू. प्रकारने काष्ठपै-पोथीपै, लिखा । आदि दश प्रकारकी वस्तुमें-आकृति, अनाकृतिरूपे--स्थापना निक्षेप, करना दिखाया है । और लक्षणकारने-वस्तुमें जे गुण है उस गुणोंसें तो रहित, और उसीके अ. भिप्रायसें, उनके सदृश--आकृति, अथवा अनाकुतिरूपे, इछित व. स्तुको स्थापित करना सो-स्थापना निक्षेप । तो अब इसमें-नामका समावेश कैसे होगा. ? अगर जो नामका समावेश करनेका
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