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________________ भावनिक्षेप समीक्षा. ( ३७ ) -- आवश्यक क्रियाका कारणरूप साधुमें, भाव आवश्यकका, आरोप करकेही, द्रव्य आवश्यक कहा है. ॥ परंतु ढूंढनीजीका कल्प्पा हुवा - गुण रहित, नाम, आकार, सहित द्रव्य निक्षेप, कैसे बन सकेगा ? इसीही वास्ते द्रव्य निक्षेप के पाठयें, अर्थभी करणा छोड दिया है। केवल जूठा नयोंका डोल दिखाके - आडंबर किया है, इत्यलं विस्तरेण ॥ इति तृतीय निक्षेप समीक्षा. ॥ अथ चतुर्थ निक्षेप समीक्षा. ॥ ढूंढनी - वस्तुका - नाम, आकार, और वर्त्तमान गुण सहित, सो-भावनिक्षेप | सूत्रार्थसें--भाव आवश्यक में - उपयोग सहित, आव. श्यकका करणा, कहा है ॥ ४ ॥ ? समीक्षा - पाठक वर्ग ! उपयोग सहित, आवश्यकका करणा, सो-भाव आवश्यक, । उस आवश्यककी किया मात्रमें नाम, आकार, कैसे गुस गया ! अगर नाम, और आकार, आवश्यक वस्तुका गुडनाथा तो सूत्रसे - नामावश्यक, स्थापना आवश्यकका निक्षेप, भिन्नपणे, कहकर कैसे आई ? विचार करोकि--गणधर महाराजाओंसें विपरीतपणे जाती है कि नहीं ? ॥ इति चतुर्थ निक्षेप समीक्षा ॥ ४ ॥ पाठक वर्ग ! हम चारों निक्षेपोंकी समीक्षा, करकेभी आये है, तोभी सुगमता के लिये, किंचित् विशेष विचार दिखावते है इसी ढूंढनीजीने-अपने लक्षणमें, आकार और गुण रहित, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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