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________________ ( ३६ ) द्रव्यनिक्षेप समीक्षा: पास पढी ? तूं कहेंगी कि जूठी तो नही है । तो हम पुछते है किं सत्यका विपरीत क्या ? तूंही दिखाव ? क्योंकि - जैनोंको तो साते नयों प्रमाणभूत है। परंतु तेरा कल्प्या हुवा द्रव्यनिक्षेपको निरर्थक ठहराने के लिये, यह प्रपंच करना पडा होगा ? परंतु हम तेराही लेखका निरर्थकपणा, फिरभी दिखादेंगे. , इस वास्ते इहां पर विशेष विवेचन छोडके, लक्षणादिकमें कहा हुवाभी, द्रव्य आवश्यकका स्वरूप, सुगमता के लिये, प्रगट करके दिखाते है. ।। जो वस्तु - पूर्व, किंवा अपर कालमें, कार्यस्वरूपका कारणरूपे निश्चय हो चुकी है, उसका नाम " द्रव्य" है. उस कार्य स्वरूपका, कारणस्वरूपमें, आरोप करणा, उसका नाम " द्रव्यनिक्षेप" कहा है। जैसे - मृतक साधु, अथवा साधु होनेवाला है, उसमें साधुपणा वर्तमानकालमें नही होनेपरभी, साधुपणे का आरोप करके, साधु--कहते है सो- द्रव्य निक्षेप ही कहा जाता है. उनका नाम " द्रव्य निक्षेप" है । क्योंकि शास्त्रकारने भी जीवादिक वस्तुमें ' आवश्यक ' वैशी संज्ञा रखनी, उसका नाम -- नाम निक्षेप, माना है १ || और काष्टादिक दश प्रकारमेंसे - किसीभी प्रकार में, 'आवश्यक वस्तुको स्थापित करणा, उसका नाम - स्थापना निक्षेप, माना है. २ ॥ तैसे ही - आगम के भेद से- वर्तमान में जीवका उपयोगरूप, भाव विना, आवश्यकका पढनेवाला साधुको कारण मानकेही ' द्रव्य निक्षेपमें कहा है । और नो आगमके भेद से- १ जाणग सरीर - कहनेसें, मृतक सा'बुको । और ' २ भविअ सरीर ' कहनेसें - साधु होनेवालेको, द्रव्य निक्षेपमें, कहा है । सोभी कारण ही कार्यका आरोप किया है ।। , १ अवश्य क्रिया वोधक वस्तुको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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