________________
द्रव्यनिक्षेप समीक्षा.
(३५)
व्य विना, क्या ? किसी कालमें, अथवा किसी रूपसे, किसी पुरुबने देखा ? | अगर देखा तो किस प्रत्यक्षादि प्रमाणसे देखा ? दिखादो ? १ । इस वास्ते वर्त्तमानमें गुणरहितपणे वस्तुको, कहना, सोई झूठ है । और कारणमें- कार्यका आरोप करणा, उसका नाम द्रव्यनिक्षेप है । सो-नाम, और स्थापनासे, भिन्न रूपसे, वस्तुका तिसरा - द्रव्य निक्षेप है । उसमें नामनिक्षेप, और स्थापनानिक्षेप, क्यौं लिख दीखाती है ? क्योंकि - सूत्रपाठसेही भिन्नरूपे सिद्ध हो चूका है। इस वास्ते ढूंढनीजीका यह अगडंबगड लिखनाही निरर्थक है. ।। ढूंढनी - इस द्रव्य आवश्यक के ऊपर ७ नय उतारी है, जिसमें तीन सत्यनय कही है.
यथासूत्र - तिएह सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थ्यु. अर्थ:- तीन सत्यनय अर्थात् सातनय.
समीक्षा - हे पंडिते! तीन सत्यनय- इसीका फलितार्थमें क्या ? सत्यशब्दका अर्थ, सात करके, सातनय, ठहराती है ? प्रथम तो यही पूछते है कि - सत्यनय, वैशा अर्थ, सूत्रमेंसें किस पदका नि काला ? क्योंकि सूत्रों तो - शब्द, समभिरूढ, और एवंभूत, यह तीन नय- अनुपयुक्तको, वस्तु नहि मानते है। इतनाही मात्र अर्थ है, तो पिछे - सत्य और सात, बैशा कहांसे लाके टेकती है ? तुम नयोंका ज्ञान, गुरु विना- कैसे समजोंगें ? ॥
|| पार्वतीजी फिर लिखती है कि- पहिली. ४ नय, द्रव्य अर्थको प्रमाण करती है। पिछली ३ सत्य नय, यथार्थ अर्थको प्रमाण करती है । वस्तुके गुण विना वस्तुको अवस्तु प्रकट करती है. ॥ समीक्षा - है सुमतिनी । जब पिछली तीन नयको -सत्य, ठहराती है, तो क्या ? पहिली ४ नय जूही है ? यह अर्थ किस गुरुके
!
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org