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(३०) पार्वतीजीका लेख. श्यक सूत्रके पदादिकका-यथाविधि सीखना, पढना, परंतु विना उपयोग, क्योंकि विना उपयोग द्रव्यही है । इति
इस द्रव्य आवश्यकके उपर ७ नय उतारी हैं, जिसमें तीन सत्य नय कहीं है.
॥ यथासूत्र-तिएह सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवथ्थु ॥
अर्थ-तीन सत्यनय । अर्थात् सात नय, यथाश्लोक नैगमः संग्रहश्चैव व्यवहार ऋजु सूत्रको शब्दः समाभिरूढश्च एवंभूति नयोऽमी । १।।
अर्थ-१ नैगमनय, २ संग्रहनय, ३. व्यवहारनय, ४ ऋजु सूत्रनय, ५ शब्दनय, ६ समभिरूढनय, ७ एवं भूतनय.॥ इन सात नयोंमेंसे पहिली, ४ नय, द्रव्य अर्थको प्रमाण करती हैं। और पिछली ३ सत्यनय, यथार्थ अर्थको ( वस्तुत्वको) प्रमाण करती हैं, अर्थात् वस्तुके गुणविना वस्तुको अवस्तु प्रकट करती हैं ।
॥ नो आगम, द्रव्य-आवश्यकके भेदोंमें-जाणग शरीर, भविय शरीर, कहै हैं ॥ ३ ॥
॥ इति ढूंढनीजीका-तिसरा निक्षेप, सूत्र, अर्थ ।।
|| भाव आवश्यकमें-उपयोग सहित, आवश्यकका करना कहा है ४ ॥ इन उक्त निक्षेपोंका सूत्रमें-सविस्तार कथन है. ॥
१. एवंभूतो नयाअमी ।। इहां एसा पाठ चाहीये, एसा. बहुत जगे पर फरक है हम लिख दिखावेंगे नही. ॥ - २ तिसरा निक्षेपके, और चोथा निक्षपके, सूत्रादिकमें, गोटा
ला कर दिया है सो, हमारा लेखसे विचार लेना ।।
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