________________
पार्वतीजीका लेख. (२९) लिया, ६ लपेटलिया, ७ पुरलिया, ८ ढेरीकरली, ९ कारखचली, १० कौडी रखली, ११ 'आवश्यक करनेवालेकारूप, अर्थात् हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, ऐसारूप उक्तभांति लिखा है। अथवा १२ अन्यथा प्रकार स्थापन करलिया कि, यह मेरा आ वश्यक है, सो स्थापना आवश्यक २ ॥
॥ मूल-नाम ठवणाणं को पइ विसेसो, णाम श्राव कहियं, ठवणा इतरिया वा होजा, आव कहिया वा होजा ॥ .
॥ अर्थ-प्रश्न-नाम, और स्थापनामें--क्या, भेद है.
उत्तर-नाम जावजीव तक रहता है, और स्थापना-थोडे काल तक रहती है, वा जावजीव तकभी रहती है।
॥ इति ढुंढनीजीका-दूसरा निक्षेप, सूत्र, अर्थ. ।।
॥ सेकिंतं दवावस्सयं २ हुविहा पण्णात्ता, तंजहा-आगमओ य, नो आगमत्रो य २ । सेकिंतं आगमओ दव्वावस्सयं २ जस्सणं आवस्सएत्ति पयं सिरिकयं, जाव नो अणुपेहाए, कम्हा अणुवउगो दव्वमिति कटु॥ ___ अस्यार्थः-प्रश्न-द्रव्य आवश्यक क्या-उत्तर-द्रव्य आवश्यक २ भेद, यथा षष्ट अध्ययन, आवश्यक सूत्र } । आवश्यक के पडनेवाला आदि २ । प्रश्न-आगम द्रव्य आवश्यक क्या! उत्तर-आव:
१. हाथ जोडै हुये ध्यान लगाया हुवा, आदिसें आवश्यक क्रिया: करने वाला,साधुकी स्थापना, अर्थात् मूर्ति, सिद्भरूप है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org