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________________ पार्वतीजीका लेख. (२७) ॥ अस्यार्थः-*नामनिक्षेप सो-वस्तुका आकार, और गुणरहित, नाम, सो नामनिक्षेप १ । स्थापनानिक्षेप सो-वस्तुका आकार, और नामसहित, गुणरहित, सो स्थापनानिक्षेप २ । द्रव्यनिक्षेपसो-वस्तुका वर्तमान गुणरहित, अतीत अथवा अनागत गुणसहित, और आकार, नाम भी सहित, सो द्रव्यनिक्षेप ३। भावनिक्षेप सो-वस्तुका नाम, आकार, और वर्तमान गुणसहित, सो भावनिक्षेप ४। । इति पार्वती ढूंननीजीके मनकल्पित चार निक्षेपका अर्थ ॥ पाठक वर्गको पुनः पुनः याद करानेके लिये इहांपर लिखके दिखाये है. ॥ __ अब सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट २ सें सूत्र. ॥ सेकिंतं श्रावस्सयं, आवस्सयं चउविहं पण्णात्तं, तंजहा-नामावस्सयं १ । ठवणावस्सयं २ । दव्यावस्सयं ३ । भावावस्सयं ४ । ॥ सेकिंतं नामावस्सयं, नामावस्सयं जस्सणं-जीवस्स वा, अजीवस्स वा, जीवाणं वा, अजीवाणं वा, तदुभयस्स वा, तदुभयाणं वा, आवस्सएत्ति-नामं, कज्जइ सेतं नामावस्सयं. १ ____* वस्तुमें-नामादि चार निक्षेप, भिन्न भिन्न स्वरूपसें, समजने है, ( देखो निक्षेपके लक्षणोंमें ) तो भी नामके स्वरूपमें-आकार, और आकारके स्वरूपमें-नाम, इत्यादि, विपर्यासपणे लिखती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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