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भाव निक्षेप सूत्र.
(२५)
॥ अर्थ:-भाष आवश्यकमी- १ आगम, २ नो आगम, दो कारसे है | १ आगमसे भाव आवश्यक यह है कि -जी आवश्यकका जाण साधु पुरुषादि सूत्रार्थमें उपयोग सहित वर्त रहा है, सीजानना || २ मो आगमसें तीन प्रकारका है- १ लोकिक जे-भारत रामायणादिकका श्रवण मनन आदि ते । २ कुमावचानिक जेचरक आदि साधुओंका होम हवन आदि ते । ३ लोकोत्तरिक जेशुद्ध साधु आदिका दो टंककी प्रतिक्रमण क्रिया ते । यह तीन कारसे, नोआगम "भाव आवश्यककी" क्रिया, दिखाई है. ॥
इति : भाव श्रावश्यकरूप निक्षेप सूत्रार्थ.
V
अब भावनिक्षेपका तात्पर्य - तीर्थंकरोंके अरूपी ज्ञान गुणका, एक अंशका आधारभुत, अजीवरूपी पुस्तकका नाम, आवश्यक सो, नामनिक्षेप १ । उसमें अक्षरोंकी रचना, अथवा पठित साधुकी मूर्ति, यह दोनो प्रकरसें, उसका स्थापना निक्षेप २ । अब वही सूत्रका पाठ, और अर्थ, गुरुमुखसें पढकर, उपयोग चिनाका साधु उपदेश करनेको लग रहा है, सो द्रव्य, द्रव्यनिक्षेप ३ । जब वही साधु उपयोग घरमे आके, सूत्रार्थ में लीन हुवा, तब भाव हुवा, सो भाव निक्षेप ४ । यह चारो निक्षेप हमारी अवश्य क्रि यारूप वस्तुके दिखाये है। इसमेंसे तीर्थकरोके भक्तोंको निरर्थक रूप कौनसा निक्षेप है ? उनका विचार करना.
fe or निक्षेपके विषय में मृतक साधुका शरीर सो, राजा'णग शरीर है। और दीक्षा लेनेकी इछावालेका शरीर है सो, रामविअ शरीर है । उनका आदर, योग्यता सुजव, क्या नही करते है ? करते ही है । सोभी द्रव्य निक्षेपका विषय, निरर्थक रूपका
नही है ॥
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