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भाव निक्षेप सूत्र. 'आहार, विहार, व्याहार, व्यवहारादिक विगेरे, जो जो क्रियाओं प्रत्यक्षपणेसें दिखनेमें आती है । सो सो सर्व क्रियाओ, १ नैगम नय । २ व्यवहार नय । ३ संग्रहनय ।
और ४ ऋजुसूत्र नय । यह जो चार नयों है, इनकी मुख्यतासेंही, जैन सिद्धांतोंमें वर्णन किई हुई है ? । और इस विषयकी क्रियाओंका, आदर करनेसेंही, हम, लोकोमें, सिद्ध रूप हो के फिरते है । और यही द्रव्य निक्षेपका विषयभूतकी क्रियाओं, परिणामकी धाराको वर्द्धि करनेको, परम कारणभूतही है, इस वास्ते यह द्रव्य निक्षेपकी क्रियाओमी, निरर्थक रूपकी न रहेगी ?। अगर जो निरर्थक रूपकी मानेंगे तो, जैन सिद्धांतोंमें वर्णन किई हुई, सर्व क्रियाओंका निरर्थकपणा होनेसें, हम जैन मतकाही लोप करनेवाले सिद्ध हो जायगे ?। इस वातको पाठक वर्गोने वारंवार विचार करतेही चलेजाना ? ॥ इत्यलं विस्तरेण ॥ .. ॥ इति द्रव्य निक्षेप सूत्रका तात्पर्य ॥
॥ अथ ४ चतुर्थ भाव निक्षेप सूत्र. ॥ ॥ सेकिंतं भावा वस्सयं २ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा । १ आगमोब। २ नोागमोत्र । सेकिंतं १ आगमओ भावा वस्सयं, जाणए उव उत्ते, सेतं भावावस्सयं । सेकिंत २ नोआगमओ भावावस्सय २ तिविहं पण्णत्तं, तंजहा १ लोइया २ कुप्पावणि।३ लोगुत्तरिअंइत्यादि.॥
। १ शुद्ध भोजन व्यवहार । २ शुद्ध यात्रा व्यवहार । ३ शुद्ध भाषा व्यवहार । ४ शुद्ध क्रिया व्यवहार.
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