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________________ प्रस्तावना. ॥ दोहा. ॥ पंडित योगीनाथ शिव, लिखी सम्मति आप। लवपुर मांहि निवास जिह, शंकरके प्रताप ॥१॥ (४) पार्वती रचितो ग्रंथो, जैनमत प्रदर्शकः। प्रीतयेऽस्तुसतां नित्यं, सत्यार्थ चंद्र सूचकः॥१॥ १४।५।१९.०५ । गोस्वामि रामरंग शास्त्री, मुख्य संस्कृता ध्या Jपक, राजकीय पाठशाला, लाहौर ॥ (५) सत्यार्थ चंद्रोदय जैन-इस पुस्तकमें, यह दिखलाया है कि, मूर्तिपूजा जैन सिद्धांतके विरुद्ध हैं । युक्तियें सबकी समजमें आने वाली हैं । और उत्तम हैं, दृष्टांतोंसें जगह २ समजाया गया है । और फिर जैनधर्मके सूत्रोंसे भी-इस सिद्धांतको पुष्ट किया है। जैनधर्म वालों के लिये यह ग्रंथ अवश्य उपकारी है । लाहौर-राजाराम पंडित० संपादक आर्य ग्रंथावली ।। (६) अंग्रेजीमें-पी० तुलसीराम. बी० ए० लाहौर ।। (७) गुरुमुखी अक्षरोंमें* इनसातों पंडितोंको, न जाने किस कारणसें फसाये होंगे। * कितनेक पंडितोंने तो बडी २ उपमाओ देके, ढूंढनीजीकी, बड़ी ही जूठी प्रशंसा कोई है । सो सत्यार्थ सें, अर्थके साथ विचार लेना ॥ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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