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प्रस्तावना.
सर्व सूत्रोंका मूल सूत्र है, उनको भी धक्का पुहचानेका इरादा उछाया है । और-स्थापना निक्षेपको, उठानेके लिये, कितनेक मूर्ख ढूंढकोंने, जो जो कुतों किइथी, उनका ही पुन जीवन करके,
और वर्तमानमें प्रचलित कुतकोंसें, अपनी थोथी पोथी भरदेके,जैन मतके शत्रुभूत, आर्यसामाजिष्टके, दो चार पंडितोंकी प्रशंशा पत्रिका, किसीभी प्रकारसे डलवायके, अजान वर्गको भ्रमित करनेका उपाय किया है ? _ते पंडितोंकी सम्मति, नीचे मुजब(१) वसता लवपुर मध्ये, छात्रान् शास्त्रं प्रवेशयता । संमतिरत्र सुविहिता, दुर्गादत्तेन सुविलोक्य ॥ १ ॥ पं० दुर्गादत्त शास्त्री० अध्यापक० आः का० लाहौर ॥
(२) मिथ्या तिमिर नाशक मेतत् - उपक्रमोप संहार पूर्वकं, सर्व मयाऽवलोकितम् । इति प्रमाणीकरोति । लाहौर डी० ए० वी० कालेज प्रोफेसर, पंडित राधाप्रसाद शर्मा शास्त्री ॥
(३.) दयानंदने एम लिखाथा, सत्यार्थ प्रकाशे ठीक । मूर्तिपूजाके आरंभक हैं जैनी, या जगमें नीक ॥ पर अवलोकन कर यह पुस्तक, संशय सकल भये अब छीन, तातें धन्यवाद तुहि देवी, तूं पार्वती यथार्थ चीन । ३ । साधारण अबलामें ऐसी, होइ न कब हूं उत्तम बुद्ध । तांते यह अवतार पछीनो, कह शिवनाथ हृदय कर शुद्ध ॥ बार २ हम ईश्वरसे अब,यह मांगे हैं बर करजोर । चिरंजीवि रह पर्वत तनया,रचे ग्रंथ सिद्धांत निचोर ॥४॥ इत्यादि ।।
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