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________________ प्रस्तावना. को, कदाच हमारा अंजन, फायदाकारक-न हुवा तो, कुछ अंजनका दाष, न गीना जायगा ? ॥ ___जबसे यह गुरु बिनाका पंथ प्रगट हुवा है, तबसे आजतक, इनके कितनेक पल्लव ग्राही ढूंढकोंने, अपना मनःकल्पित मतको ध. कानेके लिये, अन्य मतके, और जैनमतकेभी सर्व शास्त्रोंसें सम्मत, और जिनकी साक्षी यह धरती माताभी हजारों कोशों तकमें, हजारो वर्षोसे, गवाही दे रही है, वैसी श्रीवीतराग देवकी अलोकिक मूर्तिका, और जैन मतके अनेक धुरंधर आचार्य महाराजाओंकाभी, अनादर करके, हमतो गणधर भाषित सूत्रही मानेंगे, वैसा कहकर, मात्र. [३२] वत्रीश ही सूत्रोंको आगे धरके, अपना ढूंढक पंथको धकाये जातेथे,और अपनी सिद्धाइ प्रगट करनेको,सर्व महापुरुषोंकी निंद्याके साथ, अगडंबगडं लिख भी मारतेथे, जैसें प्रथम ढूंढक जेठमलजीने-समकित सार,लिख माराथा,और पिछे किसीने छपवाके प्रसिद्ध करवायाथा, परंतु जब गुरुवर्य श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी (प्रसिद्ध नाम आत्मारामजी) की तरफसें, उनका उत्तर रूप-सम्यक्त्व शल्योडार, प्रगट हुवा, तब उनका उत्तर देनेकी शुद्धि न रहनेसें, थोडेदिन चुपके होके बैठ गयेथे । फिर इस ढूंढनीजीने-ज्ञानदीपिकाका, धतंग खडा किया, उनका भी उ. त्तर हो जानेसें चुचके हो गयेथे, ऐसे वारंवार जूठे जूठ लिखनेको उद्यत होते है। परंतु मूर्ति पूजकोंकी तरफसें, सत्य स्वरूप प्रगट होनेसे, ढूंढकोंको, कोइ भी प्रकारसे उत्तर देनेकी जाग्या न रहनेसे, पुनः इस ढंढनी पार्वतीजीने, मनः कल्पित जूठे जूठ चार निक्षेपका लक्षण लिखके, जो गणधर गूंथित, श्री अनुयोगद्दार नामका महागंभीर, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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