SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ M प्रस्तावना. ॥ॐ नमो जिनमूर्तये ॥ ॥ प्रस्तावना॥ || सज्जन पुरुषो ! यह ढूंढनी पार्वतीजीने, 'प्रथए-ज्ञानदीपिका, नामकी पुस्तक प्रगट करवाईथी, परंतु थोडेही दिनोंमें, मु. निराज श्रीवल्लभ विजयकी तरफसें-गप्प दीपिका समीरके, ज. पार्टमें सर्वथा प्रकारसे बजगईथी,और वह कठोर पवनको, हटानेको समर्थ नहीं होतीहुई, इस ढूंढनीजीने, पुनः सत्यर्थ चंद्रोदय जैन. नामका पुस्तकको प्रगट करवाया, परंतु यह विचार न किया किएक तो रात्रिका समय, दूसरा दृष्टि विकारका भारी दोष, तोपिछेएक चंद्रका उदय मात्र हैं सो, वस्तु तत्त्वका बोध-यथावत, किस प्रकारसें करा सकेगा। चंद्रका उदय तो क्या, लेकिन सूर्य नारायणका उदय होनेपरभी, दृष्टि दोषके विकारवाले पुरुषोंको, कुछभी उपकार नहीं हो सकता है। इस वास्ते प्रथम दृष्टि दोष दूर करनेकी ही, आवश्यकता है । जब दृष्टि दोष दूर होजायगा, तब उनके पिछे. सें, क्षयोपशमानुसारसें-चंद्रके उदयमेंभी, और सूर्यके उदयमेंभी-वस्तु तत्वका, यथावत् भान होजायगा । हमारे टूढकमाइयांका जिनप्रतिमाके विषयमें दृष्टि दोष दूर होनके वास्ते, हमनेभी यह अंजनरूपग्रंय, तैयार किया है । कदाच अंजन करती वखत, दृष्टि दोषका कारणसें किंचित्-कर्कशता, मालूम पडेगी, परंतु जो शिरको ठीकाने रखके, अंजन करते रहोंगे तो, दृष्टि दोषका विकार तो न रह सकेगा। और तो क्या लेकिन कोई भूत प्रेतादिककाभी दोष, हुवा होगा सोभी पायें न रह सकेगा ! हमारा अंजनको हमको ऐसी खात्री है। परंतु विपरीत भवितव्यताबालो. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy