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भाव निक्षेपका लक्षण.
(९)
मूर्तियांका, आदर करनेसें, हमारा कल्याण क्यों न होगा ? अपितु निश्चय करकेही, हमारा कल्याण होगा । जो हम एक प्रकार सें विचार करें तो, नामसेंभी, मूत्तियां है सो, विशेषपणेही "वस्तुका " बोध करानेवालीयां होती है. कारण यह है कि - ऋषभादिक नाम है सो, दूसरी वस्तुओंके साथ, मिश्रितपणेभी होते रहते है, परंतु वीतरागी मूर्त्तियां तो, किसीभी दूसरी वस्तुओंके साथ, संबंध नही रखतीयाँ है, यही मूत्तियां में विशेषपणा है || २ || अब जो ऋषभादिक नाम, और उनकी मूर्तियां, हमारा कल्याणको करने वाली हो चूकी है, उस तीर्थकरों की - बाल्यावस्था, अथवा मृतक देहरूप अपर अवस्था है सो, देवताओंका चित्तको भी, भक्तिभाव करनेको द्रवित करती है, सो तीर्थंकर 'भावका कारणरूप शरीरकी, भक्तिभाव करनेको, हमारा चित्त द्रवीभूत क्यों न होगा ? अपितु अवश्यही होगा, परंतु हमारा भाग्यकी न्यून्यता होनेसें, ऐसा संबंधही मिलनेका कठीन है || ३ || अब जे जे वस्तुओ साक्षात्पणे है, और उनकी प्रवृत्ति; अपने अपने कार्यमें हो रही है, सोई “ भाव निक्षेपका " स्वरू
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पकी है. ॥ जिसको जो वस्तु उपादेयरूप है, सो तो अपणा उपादेयके स्वरूपसे मानताही है । इस वास्ते साक्षात् तीर्थकरो है सो तो, हमारा उपादेय रूपही रहेंगे । इसमें तो कुछ विवादका स्वरूप ही नही है || ४ || इतिचार निक्षेपकी समजूती ॥
| अब दूसरी प्रकार सेंभी किंचित् समजूती करके दिखावते है अब जिस वस्तु के " नाम निक्षेपकी " अवज्ञा करेंगे, उससे भी उस 'भाव' पदार्थकी ही अवज्ञा होती है, जैसे-अपने शत्रुके नामकी अवज्ञा लोक करते है. ॥ १ ॥ फिर उस शत्रुकी मूर्त्तिकोभी वि कृत वदनसेंही देखते है || २ || और उनकी पूर्व अपरकी अवस्था
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