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भाव निक्षेपका लक्षण.
( ८ )
सदृश होनेसे, भाववस्तुका बोध करानेमें, नाम सेभी विशेषही कारणरूप होती है, परंतु निरर्थक रूपकी नही है |२॥
|| अब भाव पदार्थकी जो पूर्व अवस्था है, अथवा अपर अबस्था है, सोभी उस भाव पदार्थका " द्रव्य स्वरूप " परम कारण'रूप होनेसें, उसी भाव पदार्थकाही बोध कराने वाला है, इस वास्ते सर्व प्रकारसे ही उपयोग स्वरूपका है, परंतु निरर्थक रूप नही हैं ३ || अब चतुर्थ निक्षेपका विषयभूत जो 'भावपदार्थ' है, सो तो उपयोग स्वरूपकाही है, ।। इति चार निक्षेपका सामान्य प्रकार तात्पर्य ॥
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॥ विशेष समजूती - जिस जिस " नामका " आदर होता है, सो सो, केवल नाम मात्रका नही होता है, परंतु उस नामके संबं धवाला, भाव पदार्थका " ही आदर होता है । जैसें - ऋषभादिक नामका आदर करनेसें, हम तीर्थकरोंकाही आदर करते है ।। यद्यपि यह ऋषभादिक नाम, दूसरी वस्तुओंका होगा, तोभी हमको बाधक न होगा, क्योंकि - जिस जिस वस्तुके अभिप्रायसें, नामका उच्चारण करेंगे, उस उस वस्तुकाही बोध करानेमें, नाम उपयोगवाला रहेगा, इस्से अधिक नाम निक्षेपका प्रयोजन नही है ॥ १ ॥
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अब यही " " ऋषभादिक " नाम है सो, अनेक वस्तुओंके साथ संबंधवाले हो चुके है, अथवा होते है, उस उस भाववस्तुका " दुर्लक्ष करके भी, इसीही ऋषभादिक के नामसें, हम हमारा जो इष्ट रूप तीर्थकरो है, उस वस्तुकाही लक्ष कर लेते है; और हमारा परम कल्याण हुवा, एसें नामके उच्चारण मात्रसें ही मानते हैं, तब जो खास वीतराग दशाका बोधको करानेवाली, और तीrain ध्यानस्थ स्वरूपकी, और ऋषभादिक नाम निक्षेपकीतरां, दूसरी वस्तुओंसें, संबंधको नही रखनेवाली, जिनेश्वर भगवानकी
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