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(१०) भाव निक्षेपका लक्षण. को श्रवण करकेभी आनंदित होते ही नहीं है, सोभी उस 'भाव' प. दार्थकोही अवज्ञा है ॥ ३ ॥ ऐसें सर्व पदार्थों के विषयमें विचारणेका है ॥ इति द्वितीय प्रकार. ... इसमें फिरभी विशेष यह है कि-जो 'भाव' पदार्थ, जिस पुरुषको, अनिष्ट रूप है; उस पुरुषकों उसका नाम निक्षेप ॥१॥ उसकी स्थापना ॥२॥ उनकी पूर्व अपर अवस्थाका स्वरूप भी ॥ ३ ॥ दिलगीरी ही करानेवाले होते है इत्यादिक समजूति, दूसरे भागमें, विशेषपणे करके हम दिखावेंगे..
एक ढूंढककी तर्क-जैन सूत्रोंमें,-चार निक्षेप कहै है, इससे सिद्ध होता है कि, तीर्थकर भगवानने चार हो बातकी छुट, दोई हुई है, इसमेंसें कभी एक बात, हम न माने तो, क्या संसार सागर नहीं तरसकते है ? तुम चार निक्षेपको मानने वाले ही तरोंग इति अभिप्रायः ॥ . ___उत्तर-तर्कवालेको, हम इतनाही पुछते है कि-नवतत्त्वमेंसें एक तत्वका लोप, कोई पुरुष दुराग्रहसे करें, और उनका लोप विषयकाही उपदेश देवें, वह संसार सागर तर के नही ? और ऐसही षट् द्रव्यमेसें, एक जोव द्रव्यका लोप, दुराग्रहसे करनेवाला, और छ जीवकी कायमेंसें-एक त्रस जीवकी कायका लोप, दुराग्रहसे करनेवाला, । संसार सागर तरेंके नही ? ॥ ऐसेंहि तीर्थकर भाषित जे जे मूल स्वरूपके तत्वो है, उसमेंसें मात्र एकैक हो तत्त्वका लोप, दुराग्रहसें करनेवाला, संसार सागर तरेंके नहीं ! । तुम कहोंगेकि-ऐसें तत्त्वका लोप, करने वाला नही तर सकाता है । तबतो तुमेरे प्रश्नमें, तुमनेभी योग्य विचार कर लेना ॥ परंतु हमतो इस बातमें, ऐसा अनुमान करते है कि-गणधर गूंथित तच्चो
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