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ढूंढकभाईयांका संसारखाता. (६९) अंबड नीके पाठमें-सम्यक धर्मादिक दिख पडा ? । और अंघाचारण के पाठमें-ज्ञानका ढेर, दिख पडा । और चमरेंद्र के पाठमें-चैत्य के बदलेमें चैत्यपद, दिख पडा। और वीरभगवान के-परमश्रावकों का, दररोजके जिनपूजनमें-पितर,दादेयां, भूत, यक्षादिक, देवतामो दिखपडे ?। और उवाईसूत्रका-बहवेअरिहंत चेइय, कापाठ तो दिखाही नहीं । ऐसें पंचम स्वमका, महानिशीथका, विवाह चूलिया सूत्रका, इत्यादिक जगें जगेंपर, विपरीतही विपरीत-लिखके, हमको प्रश्न पुछती है ?। क्या इसका नाम-संसारखाता, मान रखा है।॥१२
फिर. पृष्ट. ७० में-ढूंढनीजीने लिखा है कि-१३ नमोथ्थुणं, के पाठमें तर्क करोंगे तो, उत्तर यह है कि पूर्वक भावसे, मालूम होता है कि-देवता परंपरा व्यवहारसें, कहते आते है ॥१३॥
विचार-जैसें देवताओ, नमोथ्थुणं कापाठ, परंपराके व्यवहारसें-जिन प्रतिमाओके आगे, पढते चले आते है । तैसेंही श्रावकोंके कूलमेंभी-परंपरासें, आज तक-जिनप्रतिमाके आगेही, नमोथ्थणं,का पाठ पढयाजाता है । उस परंपराका अर्थको, उलबाके-द्रौपदीजी श्राविकाके पास, काम देवकी मूर्ति के आगे, अयोग्यपणे-नमोथ्थुणका पाठ,पढाना सरु करवाया ? क्या उसका नाम-संसार खाता मान रखा है ? ॥ १३ ॥
फिर. पृष्ट. १३८ में. ढूंढनीजीने लिखा है कि-१४ मूर्तिपूजनमें षट्कायारंभादि दोष है ।।
और. पृष्ट. १२० में लिखा है कि-दूसरा बडादोष मिथ्यात्वका है। क्योंकि जडको चेतन मान कर, मस्तक-जूकाना, यह मिध्या है ॥ १४॥
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