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(८८) इंदकमाईयाका संसारखाता. मूत्तिको देखके, कोई खुश हो जाय तो हो जाय । परंतु-नमस्कार, कौन विद्वान् करेगा ? और दाल चावलादि, कौन विद्वान्चढावेगा ? ॥ १० ॥
विचार-वीतराग देवकी-परम शांत मूर्तिको देखके, हमारे ढूंढक भाईओ-खुशभी हो जाय, तोभी नमस्कार-नहीं करते हुयें, और यक्षादिकोंकी क्रूर मूर्तिसें, खुश हुये बिनाभी-उनके आगे पद् कायाका आरंभादिक सर्व कुछ करोनेको तत्पर हुये है ? क्या उसका नाम संसार खाता मान्या है ? ॥ १०॥
फिर. पृष्ट. ४४ में. ढूंढनीजीने लिखा है कि-११ हम मूर्ति मानते है, परंतु मूर्तिका-पूजन, नहीं मानते है ।। ११ ॥
विचार-हमारे ढूंढक भाईओ इस प्रकारसें, मूर्तिपूजनकासर्वथा प्रकारसें-निषेधकरके, द्रौपदीजी परम श्राविकाके पासमेंजिन मूर्तिका पूजनको छुडवायके, श्रावकोंको नहीं इछित ऐसा, मिथ्यात्वी कामदेव है उनकी मूत्तिको-पूजानेको, तत्पर हुये । और वीर भगवानके परम श्रावकोंकी पाससे, दररोजका जिनेश्वर देवकीमूर्तिका पूजन, छुडवायके, मिथ्यात्वी पितर, दादेयां, भूतादिकोंकी -प्रतिमा पूजानेको, तत्पर हुये ? । क्या उसका नाम संसार खाता है ? ॥ ११ ॥
फिर. पृष्ट. ६७ मे, ढूंढनीजीने लिखा हैकि-सूत्रोंमे तो, मू. र्तिपूजा-कहीं नहीं लिखा है, यदि लिखा है तो हम भी दिखाओ ।। १२ ॥ ... विचार-ढूंढनाजीको, जिनेश्वर देवकी मूर्तिके बदलेमें-द्रौपदजिकि पाठमें, काम देवकी-मूर्तिका भास हो गया ? | और
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