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ढूंढकभाईयांका संसारखातो. (५) संसार खाता मान्या है ? । किस प्रकारका ज्ञानकी खूबी समजनी ? ॥२॥ - फिर सत्यार्थ पृष्ट. ४० में, दूंढनीजी लिखती है कि ३ राम चरित्रमें वज्र करणने, अंगूठीमें मूर्ति कराई । परंतु वह सब-उच्च नीच कर्म, मिथ्यात्वादि, पुष्य पापका स्वरूप दिखानेके-संबंधमें, कथन आता है । इत्यादि ।
विचार-राम लक्ष्मणके वारेमें, सो वनकरण राजा, अपना स्वामी सिंहोदर राजाको भी-नमस्कार नहीं करनेकी इछासे, मात्र निर्मल समाकितका पालन करनेके वास्ते, बारमा श्री वासुपूज्य स्वामिकी मूर्तिको, अपनी अंगूठीमें रखके, हमेशां दरसन करता रहा, सो तो हमारे ढूंढकोंका, उंच नीच पुण्य पापादि गपड सपड॥ ___ और वही तीर्थंकरोंकी परम पवित्र मूर्तिसें-द्वेष भाव करके, हमारे ढूंढक भाइओ-अपना आत्माको, महा मलीन करते रहे है, क्या उसका नाम संसार खाता मान्या है ? नजाने किस प्रकार के संसार खातेका स्वरूप है ? ॥ ३ ॥
फिर सत्यार्थ. पृष्ट. ४२ में-ढूंढनीजी लिखती है कि, मित्रकी मूर्तिको देखके-प्रेम, जागता है, यह तो हम भी मानते है । यदि लडपडे तो-उसी मूर्तिको देखके, क्रोध-जागता है ॥ ४ ॥
विचार-जैसें मित्रकी मूर्ति से प्रेम, तैसें हमारे ढूंढक भाईओने, मिथ्यात्व के साथ-गाढ प्रीति करके, पितरादिक मिथ्यात्वी देवोंकी मूर्ति पूजासें, क्या अपना स्वार्थ, सिद्ध कर लेनेक:-पान लिया है ?
और लडपडे तो-उसी मूत्तिसें (मित्रकी मूत्तिंसें) द्वेष, तैसेंही तीर्थकरों के साथ गुप्तपणे, हृदयमें-द्वेषभाव रखके, उनोंकी मूर्तियांकी-अवज्ञा करनेको, तत्पर हुये है ? क्या उसका नाम-संसार खाता, मान्या है ? ४॥ .
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