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________________ (८४) ढूंढकभाईयांका संसारखातो. .. ऐसा लिखके फिर हमको प्रश्न करती है कि भगवानको मूर्तिको देखके, किस २ को वैराग्य हुवा, सो बताओ ? ॥ विचार-इस लेखमें स्त्रीके नाम मात्रका, उच्चारण करनेसें, कामीयांको काम नही जागे । इस प्रकारकी सिद्धि करके, मात्र स्त्रीकी मूर्तिको ही देखनेसें, कामियांको काम जागे । ऐसा लिखा। . और भगवानका तो नाम मात्रसे ही, हमारे ढूंढक भाईयांका, वैराग्य निचूड जावे । मात्र भगवानकी मूर्तिको ही देखनेसें हमारे ढूंढक भाईयांका वैराग्य शुक जावे । यह जो ढूंढनीजीने विपरीत पणे लिखके दिखाया है, क्या उसका नाम संसार खाता मान्या है ? || यह संसारका खाता, हमको किस प्रकारसे समजना ? ॥ १॥ फिर पृष्ट. ३८ में-ढूंढनीजी लिखती है कि, २ ज्ञाता सू. में-मल्लदिन कुमारने, चित्र शालीमें-मल्लिकुमारीको मूर्तिको देखके, लज्जा पाई, अदब उठाया, और चित्रकार पै-क्रोध किया, लिखा है ॥ _ विचार-उस मल्लदिन कुमारने, एक स्त्री मात्रकी-मूर्तिको देखके, लज्जा पाई, अदब भी उठाया। और हम तीर्थकरोंके ही भक्त होके, उनोंकी ही-मूर्तियांकी, बे अदबी करनेवाले, किस प्रकार के निर्लज्ज गिने जावेगे ?।। और उस मल्लदिन कुमारने, कोई कारणसर-चित्रकार पर ही क्रोध किया, हम है सो हमारा परमोपकारी तीर्थंकरोंकी मूर्तियां पर ही, कारण विना-क्रोध करके, हमारा आत्माको ही महा मलीनरूप बनाते है । क्या ? हमारे ढूंढक भाईयांने इस प्रकारका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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