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( ५६ ) ढूंढनीजांका-२स्थापना निक्षेप. महा पुरुषोंको-निदती हुई, यह ढूंढनी, वीर भगवानके भक्त श्रा. वकोका, नित्य ( अर्थात् दर रोजके ) पूजनमें पितर, दादेयां भूतादिक की प्रतिमा, किस हेतु से पूजाती है ? | क्या वीरभगवान के ते परम श्रावको-मिथ्यात्वी पितर, दादेयां, के भक्तथे कि-तीर्थकर देवके भक्तथे ? उसका विचार करोंगे तब पानी गेरके, और-फल, फूल, चढायके, तीर्थकर देवकी-भक्ति करनेके वास्ते तीर्थकरोंकी मूर्तिपूजा करनेकी अपने आप सिद्ध हो जायगी । जूठी कुतर्को करनसे-क्या सिद्ध होने वाला है ? ॥ . फिर भी ख्याल करोकि-द्रौपदीजी, परम श्राविकाने-जिन
प्रतिमाका पूजन, फल, फूल, धूप, दीप, आदि सर्व प्रकारसें-बडा "विस्तार वाला, किया है । इसी ही वास्तें-शाश्वती जिन प्रतिमा.
ओंका, सतर भेदकी-पूजाका विस्तारसें, पूजन करनेवाला, जो समकिन दृष्टि-सूर्याभ देवता है, उनकी-उपमा देके, छेवटमें द्रौपदी के, पाठमें-नमुथ्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आदि पाठको भी-पढनेका, दिखाया है । तो भी-विपरीतार्थको ढूंढने वाली, ढूंढजीने अनेक प्रकारकी जूठी कुतर्कों करके, छे वटमें-कामदेवकी, मूर्तिपूजाका संभव, दिखाया है ? ॥ . परंतु हे भाई ढूंढक, हम तेरेकोही-सलाह, पुछते है कि-वीर भगवानके, परम श्रावकोंका-नित्य कर्त्तव्यमें, (अर्थात् दररोज के कर्तव्यमें ) कयबलिकम्मा, के पाठार्थसें टीकाकार, और टब्बा. कार-सर्व महापुरुषोंने, जिनप्रतिमाका-पूजन, करनेका, दिखाया है। और ढूंढनजीने-इसीही कयबलिकम्मा, के पाठार्थसें पितर, दा. ___ १ ढूंढक जेठमलने समाकेतसारमें—पाणीकी कुर लियां, क. रनेका अर्थ किया है परस्परका ढंग तो देखो ॥
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