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ढूंढनीजीका-२ स्थापना निक्षेप. (५७ ) दयां, भूतादिक की प्रतिमाका, पूजन-दररोजके लिये, ते परम श्रावकोंको करनेका-सिद्ध करके, दिखलाया है । इसलेख से-सिद्ध होता है कि, श्रावक नामधारी मात्रको भी-दररोजके लिये मूर्ति पूजा, जैन सिद्धांतोसें-सिद्ध रूप ही है । ढूंढनीजीके-कहने मुजब, चलेगा, तब तो-पितरादिक, मिथ्यात्वी देवोंकी-मूत्तिके पर, पाणी गेरके, और फल फूलादिक चढायके, दररोज-उनोंकी ही पूजा, तेरेको करनी पडेगी। __ अगर जो टीकाकारोंके-कहने मुजब, जिन मूर्तिकी-पूजा, करनेकी-मान लेवेगा, तब तीर्थकर भगवान्की-भक्तिका, लाभ-उ. ठावेगा । इस बातमें जो तेरा न्यायमें-आवें, सो ही बात ठीक है।
हे ढूंढकभाई तूं इसमें, तर्क करेगा कि-धन, पुत्रादिककी-लालचके वास्ते, हम-संसार खातेमें, सब कुछ करते है, हमको क्या विचार करनेका है ? जब तो तेरी वडी ही-भूल, होती है । ___ क्यों कि वीरभगवान्के, परम श्रावकोंका-नित्य कर्त्तव्यके विषयमें ही, यह- कयबलि कम्मा, का पाठ, आता है । उसंका-अर्थ, ढूंढनीजीने-जिन मूर्तिके बदले में, मिथ्यात्वी देवजोपितरादिक है, उनकी मूर्तिपूजा, करनेकी-दिखलाई है। और-धन, पुत्रादिकके, वास्ते तो-पूर्णभद्र, मोगरपाणी, आदि यक्षोंकी-पथ्यरकी मूर्ति, तुमेरेको पूजनेके वास्ते-अलगरूपसें, दिखाई है ।
इस वास्ते इस बातका-जिकर, कयबलि कम्मा,के पाठमेंकभी भी, नहीं समजना । इस बातका ख्याल-हमारे लेखसें, और ढूंढनीजीके-लेखसें, अछी तरां में करलेना | हम वारंवार कहांतक लिखेंगे ?॥
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