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ढूंढनीजीका-२स्थापना निक्षेप. ( ५३ ) सिद्धिकरनेकी दिखाई । तो अब विचार करोकि-पथ्थरसे बनीहुई, जडस्वरूपकी मूर्ति-सार्थक हुईके, निरर्थक ?॥
. ___हमकोतो-जडस्वभावकी, मूर्तिही-बाधकपणे, और-साधकपणे
भी, ढूंढनीजीका लेखसेंही, जगें जगें पर-दिख रहीहै । न जाने दूं• ढनीजीको, तीर्थकर भगवानकीही--परमशांत मूर्ति, आत्माकी शांतिका साधकपणे, क्यों नहीं दिखलाईदेती है ? जो जडपणा दिखलाके निरर्थक ठहराती है ?
देखो प्रथम, मूर्तिसें-बाधकपणा, सत्यार्थ पृष्ट. ३४ में ढूंढनी. जीने, लिखाहै कि-सीकी मूर्तियां-देखके, सबीकामियोंका-काम, जागता होगा । बिचार करोकि-यह जडस्वरूपकी-मूर्तियां, कामी पुरुषोंका-मनको विकार उत्पन्नकरनेसें बाधकरूप, हुई या नहीं है।
फिर पृष्ट. ५८ में देखो, ढूंढनीजीने लिखाहौक गौकी मूर्ति, तोडे तो-घातक दोष, लागे ॥ ___अब यहभी-जड स्वरूपकी, मूर्ति-तोडने वालेका आत्माको बाधकरूपकी, हुई या नहीं हुई ?।। ___तर्क-अजीइसीही पृष्ट में, हमारी स्वामिनीजीने, लिखा हैकिमूर्तिको, तोडने, फोडनेसें-दोषतो लग जाय । परंतु पूनने में-लाभ, न होय । जैसें मिटीकी गौको-पूजनेसें, दुध-न मिले ॥ इसीही वा-स्ते जडरूंप इंद्रकी मूर्तिपूजनसें-धन, पुत्रादिक, मंगने वालेको, नही मिलनेका-दिखलाकेही, आये है ।। उत्तर-है भाई ढूंढक-तूं, और तेरी स्वामिनीनीभी, सर्वजगेपर-एकही आँखसें, देखनेका-सिखे. हो । परंतु यह हमार।-अंजनकी, सहयतासें, दूसरी-आंखसेभी, थोडासा ख्याल करके-तुम लोक देखोगे, तोभी-ठीक ही ठीक, मा. लूग होजायगा। क्योंकि तेरी स्वामिनीजीने जड स्वरूपकी मर्तिसें,
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