SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०) कामी पुरुषाश्रित-त्रणें पार्वतीका चारनिक्षेप. अथवा याद आता है, तब-वेश्या पार्वतीकी तरफही, उनका-ध्यान, लगजाता है। इति कामीपुरुषको त्रणें पार्वतीका नामनिक्षेपकी, प्रीतिका स्वरूप ॥ अब उस कामी पुरुषको-किसीने-शिवपार्वतीजीकी-मूर्ति, और हनी पार्वतीजीकी-मूर्ति, दिखाई है। परंतु सोकामी पुरुषने सामान्यपणे देखके-नतो हर्षभाव दिखाया है, और नतो कुछ-थ. पभ्राजनाभी किई है, परंतु विशेषमें इतना विचार करनेको तो लग गयाकि, जैसी खुब सुरत वेश्या पार्वतीकी-मूर्ति को, देखके, मनका प्रफूलितपणासें, और रोमराजिका विकश्वरपणासे-आत्माको आनंद होता है, तैसें आनंदको-प्राप्त करानेमें, यह दोनो मूर्तियामेंसे-एकभी नहीं है । वैशा विचार करके, उस कामी पुरुषने-दिखानेवाला पुरुषको, पिछे सुपरतही करदीई है, परंतु ते मूर्तियांवालाका आग्रह सें-कामी पुरुष, खडाही रहा है । ॥ इति कामी पुरुषको-त्रणें पार्वतीका-स्थापना निक्षेपकी प्रीतिका स्वरूप ॥ ॥ अब-वही दोंनो मूर्तियांवाला पुरुष-उसकामी पुरु. .षको-शिवपार्वतीजीकी, और ढूंढनी पार्वतीजीकी-क्रमसें--पूर्व अव स्था, और अपर अबस्थाकि-जो पूर्वमें-वर्णन किईथी, सोही अ. वस्थाका-रस पूर्वक वर्णन करके सुनावता है, तो भी ध्यानपूर्वक नही सुनता है, और मुख से कहता है कि-सकर भाई वसकर, क्या ऐसी निकामी वाताहमको सुनाता है । एमा कहकर, शि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy