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________________ ढूंढक भक्ताश्रितत्र पार्वतीका १ नाम निक्षेप ( ३१ ) पार्वतीजी के वर्णनमें कुछ कथन कर सक्या नहीं । परंतु ढूंढनीजीके वर्णनमें कहता है कि अरेरे फूकटका इतना कष्टको उठा करके, ढूंढनी पार्वतीजीने तो था ही, जन्म गमाया है, ऐसा कहकर वेश्या पार्वतीकी दी मोहोत्पादकी पूर्वापर अवस्थाका ब र्णन करके, अपना आनंद, और दीलगीरी पणाभी, प्रदर्शित करता है. - ----- ॥ इति कामी पुरुषको -त्र पार्वतीका - द्रव्य निक्षेपप्रीति : अप्रीतिका स्वरूप || | अब उस कामी पुरुषको भाव निक्षेपका विषय भूत, साक्षात् शिव पार्वतीजीका दर्शन होना तो कठिन ही है। परंतु किसीने-ढूंढनी पार्वतीजी कि जो साक्षात् पणे भाव निक्षेपका विषयभूत है, उनका दर्शन करा दिया है | परंतु उसकामी पुरुषने, मलीन वेशादिक देखतेकी साथ ही मुखपें मरोडा देके चलधरा है । , ॥ अव मात्र निक्षेपका विषय रूप, साक्षात् वेश्या पार्वती को, देखतेकी साथ, उसकामी पुरुषने - रोम राजितो कर लिई है खड़ी, और नेत्र से वर्षाता रहा है अमृतभाव, और अत्यंत - आल्हादित पणे, मिलता हुवा - अपना जन्म, जीवतव्यका, साफल्यपणा ही मान रहा है || इतिभाव निक्षेप || ॥ इति कामी पुरुष आश्रित-त्रणें पार्वतीजीका चार चार निक्षेत्रका स्वरूप ॥ " || अब ढूंढक भक्त श्रावक आश्रित-त्रणें पार्वतीजीका चार चार निक्षेपका, स्वरूप - मूर्तिपूजक, और ढूंढक श्रावकका - संवाद पूर्वक, दिखाते है ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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