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________________ निक्षेपके विषयमें-त्रण पार्वतीजीका विचार. (२३) ज्ञान दीपिका जगानेका-भाव, मनमें धारण कियाथा, सो-भावः निक्षेपका विषय भूत-ज्ञानदीपिका, तीन कालमेभी-किसीके हृदयमें, न जगेगी ४॥ ॥ इति ढूंढनीजीकी-ज्ञानदीपिकाके-चार निक्षेपका, स्वरूप. ॥ अवहम-ज्यादा उदाहरण देनेकाबंध करके, यह कहते है कि जो जैन सिद्धांतकारोंने-वस्तुके चार निक्षेप, मानहै सोतो-स. त्य स्वरूपसेंही माने है, परंतु-निरर्थक, अथवा कार्यसिद्धिमें उपयोग विनाके, नहीं माने है । देखो इस बातमें-उाणांग सूत्रका, चोथा ठाणा, छापेकी पोर्थीके पष्ट. २६८ में-तथाच. १नामसच्चे । २ठवणसच्चे । ३दव्वसच्चे । ४ भावसाच्चे। अर्थ-पदार्थोंका-१नाम है । सो,सत्य है २स्थापना है सोभी, सत्य है । ३द्रव्य है सोभी, सत्यही है । ४और भाव है सोभी, स. त्यही है । यह सत्यरूप चार निक्षेपका, विषयको नहीं समजते हुये, हमारे ढूंढकमाईओं, जो मनमें आता है सोही-बकवादकर उठते है ? परंतु उनोंकी दयाकी खातर-दूसरी प्रकारके उदाहरणों सेभी, हम-हमारे ढूंढकभाई ओंको-समजूति करके दिखावते है । सो हमारे दियेहुये दृष्टांतमेसें-न्यायपूर्वक बोध, ग्रहण करना, परंतु-विपरीत विचारमें, नहीं उतरणा ॥ - ॥त्रण पार्वतीके-चारचार निक्षेप ।। अब देखियेकि-शिवस्त्री । श्वेश्या। और ३ ढूंढनीजी । यह तीन-पार्वती और तीनोंके-तीन भक्तके, उदाहरणसें-चार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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