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(२२) ढूंढक पुस्तकाको निक्षेपीका विचार. . अब हम ढूंढनी पार्वतीजीकी ' ज्ञान दीपिकाके, चार नि. क्षेप' सामान्य मात्रका स्वरूपसें दिखलावते है ॥ - ज्ञान-दीपिका-यह दो शब्दोका, मिश्रण करके, अपना पु. स्तकमें, ढूंढनीजीने-नामका निक्षेप, किया है । ज्ञान है सो तो चे. तन गुण है, और-दीपिका है सो, जड चेतन स्वरूपकी है ॥ ... यह दूसरी वस्तुओंका-नाम है सो, ढूंढनीजीने-अपनी रची हुइ पुस्तकमें, निरर्थक, और ज्ञानकी दीपिकारूप-कार्यकी सिद्धिमें, उपयोग विनाका, यह-नामनिक्षेप, माना है। तो अब विचार करो कि-यह ढूंढनीजीका पुस्तकको वांचने वाले है उनोंको-ज्ञान दीपक, कैसें जगेगा ? आपितु तीन कालमेंभी ज्ञानदीपक, जगनेवाला नहीं है । यह तो ढूंढनीजीका-नाम निक्षेपका विषय ॥ १॥
अब देखोकि, ढूंढनीजीने-अपनी थोथी पोथीमें, जो जूठे जूठ अक्षरोकी जुडाई किई है, सो स्थापना निक्षेपका, विषय है, सो स्थापना निक्षेप-निरर्थक, और कार्यकी सिद्धिमें-उपयोग विनाका, माना है, वास्ते ऐसी जूठी अक्षरोंकी जुडाईसें-वांचने वालेको, तीन कालमेंभी-ज्ञान दीपक, न जगेगा । यह तो ढूंढनीजीका दूसरा स्थापना निक्षेपका, विषय २॥ ___ अब देखोकि-ज्ञान दीपिका, ऐसा-नाम निक्षेप १ । अक्षरों की जुडाईरूप, दूसरा स्थापना निक्षेप २। यह दोनो निक्षेपनिरथक, और उपयोग विनाके, मानके-दव्य निक्षेपका, विषय रू
-संपूर्ण पुस्तक भी, गप्प दीपिका समीर ने तो-निरर्थक, और उपयोग बिनाका, करके ही दिखायाथा, परंतु ढूंढनीजीने अपने आप-निरर्थक, और उपयोग विनाकाही, मान लिया है । यहतो ढूंढनीजीका, तिसरा-द्रव्य निक्षेप ३ । अब देखोकि-दूंढनीजीने जो
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