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(१८) ढूंढक पुस्तकोंके निक्षेपोंका विचार. द्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विनाका, मान्या है । और. सम्यक ज्ञानयिोंको तो जेठमलजीके पुस्तकके, अक्षरोंकी संकलना-विपरीत ही दिखाई देती है, उनके वास्ते तो निरर्थक है, उसमें तो कोई आश्चर्यकी बात ही नहीं है, परंतु ढूंढकोंके मंतव्य मुजब-ढूंढकोंको भी-समकितसार वस्तुका-कार्यकी सिद्धि, तीनकालमें भी होने वाली नहीं है । क्योंकि यह अक्षरोंकी जुडाइ रूप-स्थापना निक्षे. पको, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विनाका, मान्या है । तो पिछे कागद उपर लिखा हुबा, जेठमल ढूंढकनीका, जूठा लेख-समकितका सार, कहांसें मिलानेवाले है ?॥
॥ इति ढूंढक जेठमलजीके-पुस्तकका, निरर्थकरूप. दूसरास्थापना निक्षेपका, स्वरूप ॥
अब जेठमलनीके-पुस्तकका, तिसरा-द्रव्य निक्षेपके, स्वरूपका विचार, करके दिखावत हे ॥
अब देखिये-समकितसार, वस्तुका, तिसरा-द्रव्यनिक्षेपाप्रथम ढूंढनीजीने-सत्यार्थ पृष्ट. ५ में-द्रव्य आवश्यकके २ भेद, यथा-पष्ट अध्ययन आवश्यक सूत्र १ । आवश्यकके पढनेवाला २ आदि । लिखके तीर्थकर-भाषित,सिद्धांतकाभी-तिसरा द्रव्यनिक्षेप, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक,और उपयोग विनाके, ठहरायके, पिछे तीर्थंकरोंका प्रथमके त्रण निक्षेपभी, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विनाके, लिख दिखायेथे । और शाह वाडीलालने गणधर भाषितसूत्रके-चार निक्षेप, करती रखते--त्रण निक्षेप, निरर्थक-ठहरानके लिये-" धर्मना दरवाजाना पृष्ठ. ६४ मे-श्री अनुयोगद्वार सूत्र कीसाक्षी देके, लिखा है, कि-हला त्रण निक्षेप-अवथ्यु, एटले उ
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