________________
ढूंढक पुस्तकोंके निक्षेपोंका विचार. (१९) पयोग विनाना, छेल्लो चोथोज आ लोकमां उपयोगी " ऐसा लि. खके ज्ञान वस्तुका-त्रण निक्षेप, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विना के, ठहरायके, तीर्थकरके-त्रण निक्षेपभी, निरर्थक,
और उपयोग विनाके ही-लिख मारे है ॥ अब इसमें विचार करनेका यह है कि-जव तीर्थंकरोंका-ज्ञान वस्तु स्वरूप पुस्तक पांनांका । और साक्षात् स्वरूप तीर्थंकर भगवानका-त्रण निक्षेप, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विनाके-होजायगे, तब जेठमल ढूंढकजीने-लिखा हुवा, जूठका पुंजरूप-समकितसार नामज्ञान वस्तुका, संपूर्ण पुस्तककि जो-द्रव्य निक्षेपके विषय स्वरूपका है सो, सम्यक ज्ञानीयोंके लिये-निरर्थक, और उपयोग विनाका, होजावे उसमें तो-कोइ आश्चर्यको बात ही नहीं है, परंतु ढूंढक, ढूंढनीजीके, मंतव्य मुजब तो ढूंढकोंकोभी-समकित सार वस्तुकी, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और उपयोग विनाकाही, हुवा है । हस वास्ते जेठमलका रचित-समकितसार नामका, संपूर्ण पुस्तककि-जो द्रव्य निक्षपके स्वरूपका है, उसमें सें-हमारे ढूंढकोंकोभी-समकितसारकी वस्तु, तीन कालमेंभी न मिल सकेगी। ॥ इति ढूंढक जेठमलजीके-पुस्तकका-निरर्थक रूप, तिसरा
द्रव्य निक्षेपका, स्वरूप ॥
॥ अब जेठमलजी के पुस्तकका, चतुर्थ भावनिक्षेपका' स्त्ररूप-दिखावते है । - अब देखिये-समकितसार वस्तुका, चतुर्थ-भाव निक्षेप, ढूंढक जेठमलजीने-जो समकितगुण चेऊनकाथा,उस-नामका निक्षेप,अपना लिखा हुवा जड स्वरूप पुस्तकमें, किया है, सोतो ढूंढक, हूं. ढनीजीक-मंतव्य मुजब-निरर्थक है ।।१।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org