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ढूंढक पुस्तकोंके-निक्षेपोंका, विचार. (१७ ) ॥ अब ढूंढकोके पुस्तकोंसें-चार निक्षेपका, विचार ॥ ___ समकित-सार, यह दो पदसें मिश्रित-नाम है। और समाकित गुण, चेतनका है, उनका सार भी उहांपर ही-मिलना, चाहिये ? परंतु जेठमलजी ढूंढकने-जूठका पुंज, लिखके, उस पुस्तकका यह-समकित सार-नाम, रखा है । सो ढूंढक, और ढूंढनीजीके-मतसे भी, नाम निक्षेप, ही होगा ! और उनोंने-नाम निक्षेप है सो, कार्यकी सिद्धिमें-निरर्थक, और-उपयोग विनाका ही, माना है । हमतो उस जूठको पुंजका-नाम समकित सार, निरर्थक ही, मानते है। परंतु ढूंढकोकी मान्यता मुजब-ढूंढकोको भी, उस पुस्तकका नाम--समकितसार, निरर्थक, और--समकितका कार्यकी, सिद्धिमें-उपयोग विनाका ही, हुवा है । इस वास्ते जेठमलजीके पुस्तकमेंसे-समकितकासार,तीनकालमें भी, किसीको-नही मिलनेवाला है ।
॥ इति जेठमलजीके पुस्तकका, निरर्थक रूप-नाम निक्षेपके, स्वरूपका विचार ॥
॥ अब जेठमलजीके पुस्तकका-स्थापना निक्षेपका, स्वरूपको विचारते है ॥ .
अवदेखिये-समाकत सार-वस्तुका,स्थापना निक्षेपका स्वरूपज्ञान वस्तुका स्थापना निक्षेप-काष्ट पै लिखा, पोथी पै लिखा, आदि दश प्रकारसे करनेका सिद्धांत कहा है।सो तीर्थकरोंके वचनानुसारसत्य लेख रूप होवे, तब ही आदर करने के योग्य होवे । परंतु ढूंढक जेठमलजीने-अक्षरोंकी जुडाई, जूठे-जूठ करके, समकितसे भ्रष्ट करनका-लेखको, लिखा है । और ढूंढक, ढूंढनीजीने-यह अ. क्षरकी जुडाई रूप-स्थापना निक्षेपको, समकितका कार्यकी सि
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