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नेत्रजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका.
( ३१ )
प्रथम भाग तात्पर्य प्रकाशक, दुहा बावनीकी, अनुक्रमाणिका, नीचे मुजब ॥
विषय
पृष्ट
१ प्रथमके भाग में, जो दोनों तरफका सूत्र पाठका मेलसें, खंडन किया गयाथा, उसका तात्पर्य (५) दुहामें, अर्थके साथ दिखाया गया है ॥
२०१
२ मूर्त्तिके विषय में, ढूंढनीजीने अनेक प्रकारकी जूठी कुतर्कों की थी, उसका खंडन प्रथम भागमें कियाथा । उसका तात्पर्य [६) दुहासें ( ४१ ) मा दुहातक, अर्थके साथ दिखाया गया है ||
२०२
३ सिद्धांतके पाठोंका, ढूंढनीजीने जो विपरीतार्थ कियाथा । उसका खंडन प्रथमके भागमें कियाथा । उसका तात्पर्य (४२) मा दुहासे ( ११ ) मा दुहातक, अर्थके साथ दिखाया गया है ||
२२३
४ ढूंढनीजीने जूठ बोलना पाप मानाथा | परंतु (५२) मा दुहाके अर्थ में, ( २७ ) कलपके साथ, ढूंढनीजीका जूठ दिखाया गया है
२३३
|| इति तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनीकी अनुक्रमणिका संपूर्ण ॥
॥ मूढोंका विचारताकी निष्फलता कालेख || १ इस लेखमें अनेक प्रकारके दृष्टांतों के साथ मूढ प्राणियां
काही विचार किया गया है
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