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________________ ( ३२ ) द्वितीय भाग अनुक्रमणिका. ॥ ढूंढक हृदयनेत्रांजन द्वितीय विभागस्य अनुक्रमणिका ॥ विषय पृष्ट. १ हेय, ज्ञेय, और उपादेय के स्वरूपसे - शिव, विष्णु, भक्तादिकाश्रित, वस्तुके चार २ निक्षेपका स्वरूप २ अनादरणीय रूप, १ हेय वस्तुके चार निक्षेपमें, साधु पुरुषाश्रित - स्त्रीका दृष्टांत - ३ ज्ञानप्राप्ति करने योग्य, २ ज्ञेय वस्तुके चार निक्षेपमें - मेरु पर्वतादिक दृष्टांत ४ स्मरण, वंदन, पूजन, करनेके योग्य, ३ परमोपादेय वस्तुके चार निक्षेपमें तीर्थंकर भगवान्का दृष्टांत — 1 ५ चार निक्षेपका विषयमें ढूंढनीजी के कल्पित लक्षणका लेख ६ ढूंढनीजीका - कल्पित लक्षणमें, विपरीतपणेका किंचित् विचार ७ सिद्धांत शब्द, जैन सूत्रोंकी - अति गंभीरताका विचार- ९ ८ सूत्रकार, और लक्षणकारके मतानुसार, ग्रंथकारके तरफसें - वस्तु के चार निक्षेपका लक्षण स्वरूप १ ९ ग्रंथकार के तरफसें, चार निक्षेपका विषयमें किंचित् समजूति - १० ग्रंथकार के तरकसें, चार निक्षेपका विषयमें - दूसरा प्रका रसें लक्षणद्वारा समजूति - १२ ११ चार निक्षेपका विषयमें - सार्थकता, निरर्थकताका विचार १३ १२ ढूंढनीजीके मतसें ढूंढक जेठमलजीका राचत- समकित " सार पुस्तकका, निरर्थक रूप चार निक्षेपका स्वरूप- १७ Jain Education International ११ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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