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नेत्रजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका.
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पुस्तको वांचने वालोंका अंतःकरण मलीन होता है ! लिखने वालोंको पाप होता है। उनकी समीक्षा - १०२ पूर्वाचार्यकृत - जिनेश्वर देवकी, मंगलिक मूर्त्तिकी स्तु तिरूप, ग्रंथका प्रथम विभागकी पूर्णाहूति ||
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॥ इति ढूंढक हृदय नेत्रांजनस्य प्रथम विभागस्य अनुक्रमणिका समाप्ता ॥
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