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(२) उपादेयादिक-वस्तुके चार चार-निक्षेप. मान्य विशेषपणा भी देखनेमें आता है । भौर-हेय, ज्ञेयादिकमें, उलट पलट भी देखने में आता है। जैसेंके, किसीको सामान्यपणे हेय, ज्ञेय, और उपादेय रूप है, तो किसीको विशेष रूपसे भी हेय, ज्ञेयादि रूप है, । और किसीको एक पदार्थ-हेय रूप है, तो दूसरेको-ज्ञेय रूप भी, होजाता है।अथवा उपादेय रूप भी, हो जाता है । सौ मतांतरादिककी विचित्रतासे, एक ही पदार्थमें, उलट पलटपणे, अनेक प्रकारकी भावनाओ दिखने में आती है ॥
॥ परंतु जिसने जो पदार्थको हेय तरीके मान्या है, सोतो उस पदार्थका-चारों निक्षेपको, हेय तरीके ही, अंगीकार करता है।
और-ज्ञेय पदार्थका चारों निक्षेपको, ज्ञेय रूप ही, अंगीकार करता है २ । और-उपादेय पदार्थका-- चारों निक्षेपको, उपादेय तरीके ही, अंगीकार करता है ३ । जैसेंके, शिवोपाशक है सो, शिवका ही-नाम, स्मरण करते है यह तो-नाम निक्षेप १ । पूजन भी शिवकी-मूर्तिका ही, करते है यह-स्थापना निक्षेप २ । और शिवकी ही पूर्वाऽपर अवस्थाको बडी प्रियपणे, मान्य रखते है यह-द्रव्य निक्षेप ३। इस वास्ते परमोपादेय शिवजीको समजके, उनके चारों निक्षेपको भी, उपादेयपणे, मान्य ही करले ते है ४॥
इसी प्रकारसे अब विष्णु भक्त है सो, विष्णुका ही-नाम, स्मरण करते है सो-नाम निक्षेप १ । पूजन भी, विष्णुकी मूर्तिका ही करते है सो--स्थापना निक्षेप २ । और विष्णुकी ही, पूर्वाऽपर अवस्थाको बडी प्रियतापणे, मान्य रखते ही है सो--द्रव्य निक्षेप ३। इस वास्ते परमोपादेय-विष्णुको ही समजके, उनके-चारों निक्षेपको भी उपादेयपणे, मान्य ही कर लेते है, ४ ॥
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