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हेय-वस्तुके, चार निक्षेपमें-दृष्टांत. (३) __ अब मुसलमान है सो, अल्लाकाही-नाम, स्मरण करते है यह तो-नाम निक्षेप १। और महज्जिदोमें गोखका आकाररूपे, असद्भावसे स्थापनाको स्थापित करके, विनयादिकभी करतेही है यह-स्थापना निक्षेप २ । और, अल्लाकी, पूर्वाऽपर अवस्थाको, याद करके, अनेक प्रकारका पश्चात्तापभी करतही है,यह-द्रव्य निक्षेपका विषय है ३ । इस वास्ते परमोपादेय अल्लाको समजके उनके चारों निक्षेपकोभी-उपादेयपणे, मान्यही कर लेते है ४॥
॥ अब क्रिश्चन है सो, इमुकाही-नाम, स्मरण करते है, यह भी-नाम निक्षेपही है १ । गिरजागर बनाके, असद् भावसे स्थापनाकोभी स्थापित करके, उहांपर अनेक प्रकारका विनयके साथ, भजन बंदगीभी करते है, अथवा कितनेक गिरजा घरमें, साक्षात्पणे इसुकी, शांत मूर्तिको स्थापित करके भी, अदबके साथ भजन वंदगी भी करते है यह स्थापना निक्षेपका ही विषय है २ ॥ और इसकी पूर्वाऽपर अवस्थाको स्मरण करके, बडा विलापभी करते है यह उनका--द्रव्य निक्षेपका, विषय है ३॥ इस वास्ते इसुको-परमो. पादेय समजके उनके, चारों निक्षेपकोभी, उपादेयपणे मान्यही रखते है ४ ॥ ____ इसमें विशेष यह है के, मतांतरके कारणसें, और भावनाका फरक होनेसें, जो कोइ एकाद वस्तु एक पुरुषको-उपादेय है, तो दूसरेको-हेयरूप, अथवा ज्ञेयरूप, भी होजाता है । इसवास्ते चार निक्षेपोंमेंभी, हेय, ज्ञेय और उपादेयपणा, उलट पलटपणे होजाता है
॥ इति उपादेयादिक-वस्तुके, चार चार-निक्षेप ॥
॥ अब साधारणपणे-हेय रूप वस्तुको, दृष्टांतसे समर्थन करते है. जैसेंके, स्त्री, अथवा पुरुषका, शरीररूप-एक वस्तु है, अर्थात्
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