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________________ ॥ ढूंढक हृदय नेत्रांजन भाग द्वितीय प्रारंभ ॥ ॥ अथ १ हेय, २ ज्ञेय, और ३ उपादेयके, स्वरूपसे-चार निक्षेपोंका विचार लिख दिखावते है । ॥ अव भव्य पुरुषोंके हितके लिये-चार निक्षेपके विषयमें, किंचित् दूसरा प्रकारसें. समजूति करके दिखावते है । ॥ इस दूनीयामें-वस्तु, अर्थात् पदार्थ, सामान्यपणे, तीन प्रकारके कहे जाते है । कितनेक पदार्थ-हेय रूप होते है, अर्थात् त्याग करनेके योग्य होते है १ ॥ और कितनेक पदार्थ ज्ञेय रूप होते है, अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने के योग्य होते है २॥ और कितनेक पदार्थ-उपादेय रूप होते है, अर्थात् अंगीकार करनेके योग्य होते है ३ ॥ ॥जो पदार्थ-हेय तरीके होते है, उनके चारों निक्षेप भी, हेय रूप ही होते है १ । और जो पदार्थ-ज्ञेय तरीके होते है, उनके चारों निक्षेप भी, ज्ञेय रूप ही होते है २ । और जो पदार्थ-उपादेय तरीके होते है, उनके-चारों निक्षेपभी-उपादेय रुप ही होते है ३ ॥ · · ॥ यह तीनों प्रकारके पदार्थमें, मत मतांतरकी विचित्रतासे, अथवा जीवोंके कर्मकी विचित्रतासे, अथवा समाजकी प्रवृत्तिकी विचित्रतासे, हेय, ज्ञेय, और उपादेय, यह तीनों पदार्थमें, सा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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