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________________ ( २८ ) नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका. टीका, सब ढूंढनीजीही, बननेको चाहती है । और नंदी सूत्रको मान्य करके, कहती है कि - उसमें लिखे हुये सूत्र है, परंतु प्रमाणिक नहीं । इत्यादिक जूठे जूठ लिखके अपनी सफाइ दिखाई है के, जूठ बोलना पाप है । उनकी समीक्षा. ९१ ढूंढनीजीने, मूर्तिपूजा-पंडितोंसे सुनी, शास्त्रोंमेंभी देखो । और परम श्रावकोंको जिन मूर्त्तिके बदले में - पितरादिकोंकी, और धन पुत्रादिकके वास्ते- पूर्ण भद्रादिकोंकी, मूचियांको पूजाती हुई, लिखती है कि, सूत्रोंमें तो मूर्तिपूजाका जिकर ही नहीं । उनकी सामान्यपणे समीक्षा. १४८ ९२ पंचम स्वप्नके पाठयें, साधुको मंदिर बनवानेका, लोभ करके माला रोहणादिक करणेका-निषेध किया है। उस पाठ में ढूंढनीजी, सर्वथा प्रकार सें, निषेध करके दिखलाती है । उनकी समीक्षा.. १५१ १३८ ९३ महा निशीथ के पाठयें, अरिहंत भगवंतकेही नामसें-प्रतिमाकी, गौतम स्वामीजीने अपनी पूजाका, प्रश्न किया है । भगवंतने - उसका निषेध किया है। उस पाउसें ढूंढनीजी - सर्वथा प्रकार सें, निषेध करके दिखलाती है । उनकी समीक्षा. १५५ ९४ विवाह चूलिया पाठमें तीनों चोवीसीकी जिन प्रतिमाओंको वांदने की भी, और पूजने की भी, प्रथम भगवंतने आज्ञा दीई है । और साधु पूजा के आशयका दूसरा प्रश्नके उत्तरमें निषेध किया है | उसमें ढूंढनीजी सर्वथा प्रकारसें निषेध करके दिखलाती है । उनकी समीक्षा. १६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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