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मूढताका स्यागोसो कल्याणका पात्र.
( २४१ )
॥ मूढ पुरुषों में सिद्धांत के वचनोंकी निष्फलता ॥ ॥ विचार सारा अपि शास्त्रवाचो, मूढे गृहिता विफलीभवति । मितंपचग्राम्यदरिद्रदाराः कुर्वन्त्युदारा अपि किं सुजात्यः ॥ १ ॥
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अर्थ - शास्त्र के वचनो होते है सो तो, विचार करनेको, सदा साररूप ही होते है | परंतु मूढ पुरुषो - ते वचनोंको ग्रहण करते हुये, निष्फलरूप ही कर देते है । जैसे कि सृजातिकी स्त्रियो, बडी उदार भी होवे, परंतु गामडाओका - दलिद्र और कृपण पुरुपोंके घर में गई हुई, ते उत्तम उदार स्त्रियां, उहांपर विशेष क्या कर सकतीयां है ? अपितु विशेष कुछभी नहीं कर सकतीयां है ॥ तैसेही - शास्त्र के वचन, बडे गंभीर, और बडे उदार, और अर्थसें भरे भी होते है । तभी ते मूढ- पुरुषों के हाथमे गये हुये, कभी स फलताको प्राप्त नहीं होते है। किंतु ते मूढ पुरुषो - शास्त्र के गंभीर वचनोंका, अर्थको नाश करते हुये, अपनाभी साथमें नाश हीकर लेते हैं. || इति काव्यार्थ ॥ १ ॥
अब इसकाव्यका, कुछ थोडासा तात्पर्य लिखते है, सो तात्पर्य
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१ जैसेकि - श्री अनुयोग द्वार सूत्रके वचनोंका नाश, सत्यार्थ चंद्रोदयमें ढूंढनी पार्वतीजीने किया- देखो इनका विचार - नेत्रांज - नमें | और धर्मना दरवाजा, नामका ग्रंथ में - शाह वाडीलालने किया | देखो इनका विचार-धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशा, नामका ग्रंथ में ! इन दोनोने कितनी मूढताकीई है सो मालूम होजायगा ||
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