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(२४०) तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. , प्रसिद्ध कियाथा। उसग्रंथ बनानेमें दो तीन ढूंढक पंडितो सहाय भूतभी हुयेथे, तोभी सब जूठही जूठ लिख माराथा । उसकाभी उत्तर हमारे तरफसें दिया गया है, सो पाठक वर्ग मंगवायके देख लेवे । हमारे ढूंढकभाइओ, किसकिस प्रकारकी जूठी पंडिताई करके दिखाते है सो मालूम हो जायगा.
॥ इत्यलं विस्तरेण ॥ ॥ इति श्री विजयानंद सूरीश्वर, लधुशिष्येन अमर विनयेन, ढूंढक हृदय नेत्रांजन प्रथम भाग, तात्पर्य प्रकाशक दुहाबावनी संयोजिता, सा समाप्ता॥
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