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( २३४) तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. जूठी कुतों करके, पृ. ९८ में-जिन प्रतिमाके बदलेमें, कामदेवकी स्थापनारूप मूर्तिसें, वरकी प्राप्ति करानेको तत्पर हुई ?। क्या ढूंढनीनीका यह जूठ नहीं है ? ॥ ३ ॥ - (४) और. पृ. १२४ में-कयबलिकम्मा, के पाठमें अनेक प्रकारकी जूठी कुतो करके, वीर भगवानके भक्त श्रावकोंका, जिन पूजनको छुडवायके, .. १२६ में-मिथ्यात्वी, पितर, भूतादिकोंका-स्थापना निक्षेपरूप, मूर्तियांको, दररोज पूजानेको तत्पर हुई? क्या ढूंढनीजीका यह जूठ नहीं है । जब मूर्तियां, कुछ वस्तु रूपकी ही नहीं है, तो पिछे ढूंढनीजी इनोंकी सबकी मूर्तियांको पूजानेको क्यों तत्पर हुई ? ॥ ४ ॥
(५) निक्षेप चार ( ४ ) जैनसिद्धांतोमें-वर्णन किये है, तो भी ट. ११ में-आठ करके बतलाया ? । क्या ढूंढनीजीका यह जूठ नहीं है ? ॥ ५ ॥
(६) भगवानकी मूर्तिमें-एक स्थापना निक्षेप, प्रसिद्धरूप है । तो भी ट. २८ में-एक मूर्तिमें ही चारों निक्षेप हमारी पास मनानेको तत्पर हुई ? | क्या ढूंढनीजीका यह जूठ नहीं है ? ॥६॥ .
(७) जब ट. २८ सें-भगवानकी मूर्तिमें ही, भगवानके चारों निक्षेप, हमारी पास-कबूल करानेको तत्पर हुई है, तब तो ढूंढनीजीने भूत, यक्ष, काम देवादिकोंकी-मूर्तियांमें भी, भूतादिकोका चारों निक्षेप, अवश्य ही माने होंगे? जब तो हृदयसे भूतादिकोंकी भक्ता. नी बनके, उनोंकी मूर्तियांको, पूजानेको तत्पर होती है, और उपरसें तीर्थकरोंका-भक्तानी पणा दिखाती है । क्या ढूंढनीजीका यह जूठ प्रपंच नहीं है ?
(८) ए. ४० में-वज्र करण राजाने,अंगूठीमें-जिन मृत्तिको
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