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तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. ( २.३१ ) दोडावते हुये, श्रावको दूर दूरतक जाते है ? और संघ निकाल करके, ढूंढक साधुओंकी एक नवीन प्रकारसें, यात्रा करनेकोनिकलते है ? इत्यादिक अनेक प्रकारके-धर्मके कार्यमें, जिमना, जिमावना, आदि-महा आरंभका कार्य, तुमेरे ढूंढक श्रावको, किस हेतुके वास्ते करते है ? तुम छेवटमें-कहोंगे कि, . संसार खाता । हम पुछते है कि, इसमें तुमेरा मन कल्पित, संसार खाताका-क्या संबंध है ? । क्या लड़के ल. लडकीका-विवाह करनेको प्रवृत्त मान होते हो ? । जो संसार खाता कह देते हो ? । अथवा मिथ्यात्वी यक्षादिक देवोंकी, पथ्थरकी मूर्तिकी पास जैसें धन पुत्रादिक लेनेके वास्ते, ढूंढनीजीने भे. जेथे, तैसें क्या धनपुत्रादिक लेने के वास्ते पूर्वमें दिखाये हुये सर्व कार्य कराते हो ?। ____ और वीरभगवानके-परमश्रावकोंके, दररोजका जिनमूर्तिका पूजनको छुडवायके, कयबलि कम्मा, के पाठसे-पितर, दादेयां, भूतादिक-मिथ्यात्वी देवताओंकी मूर्तियां दररोज, विना कारणपूजानेको तत्पर होते हो ? । तुमेरा यह संसार खाता है सो क्या चिज है ? ! तुमेरा संसार खाताका-स्वरूप, द्वितीय भागमें, मालूम हो जायगा । किस वास्ते जैन कुलमें-अंगारारूप बनके, तीर्थंकरोंकी भी आशातना करते हो ? हमने तो तुमेरा हितके. वास्ते लिखा है, आगे जैसी तुमेरी भवितव्यता । अगर तुमेरे कर्मके योगसें, दूसरा विशेष धर्मकार्य न बन सके, तोभी-तीर्थकर, गणधरोंकी, निंदा मात्रसें तो बचो ? । हम भी कहांतक तुमको समजावेगे ? |
और जे जे ढूंढनीनीने, मूर्तिपूजा निषेधके पाठो-दिखाये है, सोसो सर्व साधु पुरुषोंके-द्रव्य पूजनका, निषेधके-वास्तेही लिखे गये है। परंतु गृहस्थोका तो-दररोज पद् कर्मरूप, द्रव्य धर्मसें-भाव धर्म
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