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________________ (२६ ) नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमाणका. ७९ बहवे अरिहंत चेइयमें पाठांतर आता है, उसको प्रक्षेपरूप ___ठहराती है। उनकी समीक्षा८० अंबड श्रावकजीका-अरिहंत चेइय, के पाठसें-सम्यक् ज्ञान, व्रतादिक, ढूंढनीजीका अर्थ | उनकी समीक्षा- १०४ ८१ आनंद श्रावकका-अरिहंत चेइय, का पाठको, प्रक्षेप रूप ठहरायके-लोप करनेकी, कोशीस कीई है। उनकी समीक्षा . १०८ ८२ द्रौपदीजी श्राविकाका-जिन प्रतिमाके पूजनमें, अनेक जूठी कुतों करके, और सर्व जैनाचार्योको निंदके, और छेवटमे कामदेवकी-मूर्तिका पूजनकी, जूठी सिद्धि करके, उसकी मूर्तिके आगे-वीतराग देवकी स्तुति रूप-नमोथ्थुशंका, पाठको भी, पठानेको तत्पर हुइ है ? । उनकी समीक्षा ११० ८३ चैत्य शब्दसे-प्रतिमाका अर्थ, ढूंढनीजी अनेक स्थलोंमें, अपनाही लेखमें-मान्य करती है । तो भी सर्व जैनाचायोंकी, निंदा करके-लिखती है कि, चैत्य शब्दका अर्थ प्रतिमा, नहीं होता है । उनकी समीक्षा- ११५ ८४ ठाणांगादिक सूत्रोंमें-मूल पाठोंसें, सिद्ध रूप, नंदीश्वरा दिक-द्वीपोंमें, रही हुई, शाश्वती जिन प्रतिमाओंको-वंदना करनेको जाते हुये,जंघाचारणादिक-महामुनिओंकी पास, वहां पर-ज्ञानका ढेरकी स्तुति करनेकी, जूठे जूठे-सिद्धि करके दिखलाती है । उनकी समीक्षा८५ चमरेंद्रका पाठके विषयमें-देवताओ कोइ कारणसर,ऊर्ध्व लोकमें गमनकरेंतो १ अरिहंत । २ अरिहंतकी प्रतिमा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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