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________________ नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका. (२५) ६७ अक्षरोंको-देखके, और मर्तिको-देखके, ज्ञान होना-कि स भूलसें कहते हो ? । उनकी समीक्षा६८ बालक का-लाठीके घोडेकी, समीक्षा६९ खांडके-हाथी घोडे, खानेसें पाप । मिट्टीकी गौ-तोडनेसें पाप । और वीतराग देवकी मूर्तिकी-निंद्याफरनेसे लाभ। उनकी समीक्षा७० लोहेमें-सोनेका भाव, करलेनेकी । समीक्षा- ८८ ७१ ढूंढनीजीने-पंडितोंसे सुनी हुई, मूर्ति पूजा । और शा. स्त्रोंमें देखी हुई, मूर्तिपूजा । उनकी समीक्षा- ८८ ७२ नमो सिद्धाणके पाठसे सिद्धोंको । और नमोथ्थुणंके पा ठसें, तीर्थकर, और तीर्थकर पदवी पाके मोक्ष गये उ नको-नमस्कार, करनेकी समीक्षा७३ मूर्तिको धरके-श्रुति, नहीं लगाना । उनकी समीक्षा- ९१ ७४ सूत्रोंमें-मूर्ति पूजा, कहीं नहीं लिखी है, लिखी है तोहमेंभी दिखाओ । उनकी समीक्षा- ९२ ७५ देवलोकमें-जिन प्रतिमाओंका पूजन, कूलरूढि । उनकी समीक्षा७६ नमोध्युणं के पाठसे, देवताओने, जिन प्रतिमाओंको-न मस्कार किया, सो तो ढूंढनीजीका परंपराके व्यवहासें । उनकी समीक्षा७७ पूर्णभद्र यक्षादिकोंकी-मूर्तियांकी पूजासे, ढूंढनीजी-धन पुत्रादिककी, प्राप्ति करा देती है । उनकी समीक्षा- ९९ ७८ गणधरोंके लेखमेंभी, सैकडो पृष्ठोंकी-निरर्थकता। उनकी समीक्षा ९५ १०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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