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(२४) नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमाणिका. ५४ मूर्तिसे-ज्यादा समज, होती है । परंतु वंदना करनेके
योग्य नहीं । उनकी समीक्षा५५ पशुको मूर्तिका ज्ञान, होता है । उनको समीक्षा- ७३ ५६ बाप बावेकी-मूर्तियांको, कौन पूजता है ? इस वास्ते-भ
गवानकी मूर्तिभी, पूजनिक नहीं । उनकी समीक्षा- . ७४ १७ मल्लदिन कुमारने, स्त्रीकी मूर्तिको देखके-लज्जा पाई,
और अदबभी उठाया, परंतु हरएकने नहीं । उनकी समीक्षा
. ७५ ५८ वत्र करण राजाने. अंगूठीमें-जिन मूर्तिको रखके, दर्शन .
किया । सोभी करनेके योग्य नहीं । उनकी समीक्षा- ७६ ५९ मूर्तिके आगे-मुकद्दमा, नहीं पेश होसकता है। उनकी सपीक्षा
७७ ६० मित्रकी मूर्तिसें-प्रेम, जागे । भगवानकी मूर्तिसें-प्रेम, . न जागे । उनकी समीक्षा
७८ ६१ भगवान्की-मूर्तिसें, कोई खुश हो जाय तो हो जाय ।।
नमस्कार कौन विद्वान करेगा ?। उनकी समीक्षा- ७८ ६२ मूर्ति मानते है, पूजन नहीं मानते है । उनके पर-शासु
वहुका, दृष्टांत । उनकी समीक्षा६३ भगवानका-नामभी, तुम्हारीसी समजकी तरह नहीं।
उनकी समीक्षा६४ जीवर नामका-महावीरके, पेरोंमें पडना । उनकी
समीक्षा६५ भेषधारी, और मूर्तिका विवादकी, समीक्षा- ८३ ६६ पार्श्वनाथके-नामसें, गालो दे उनकेपर द्वेष । उनकी मू.
र्तिको-आप गालो दे । उनकी समीक्षा
नमर
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