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________________ नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका. (२३) ४३ निक्षेप चार, ढूंढनीजीका-विकल्प आठ, उसमें शंका का समाधान॥ इति चार निक्षेपके विषयमें, ढूंढनीजीका ज्ञान ॥ ४४ (१) इंद्रमें, (२) गूजरके पुत्रमें, (३) खानेकी मिशरीमें, (४) मिशरी नामकी कन्यामें, (५) मिट्टीका कूजामें, इस पांच प्रकारकी वस्तुमें सिद्धांतका वचनके अनुसारसें, चार २ निक्षेप, भिन्न २ पणे करके दिखाया है- ५९ ४५ ऋषभदेव भगवानके, और ऋषभदेव नामका पुरुषके चार चार निक्षेप, भिन्नरपणे, करके दिखाया है- ६१ ४६ केवल मूर्ति स्वरूपकी वस्तु के-चार निक्षेप, सिद्धांतानुसा रसे, करके दिखलाये है४७ ढूंढनीजीको, केवल स्थापना स्वरूपकी मूर्ति ही, वस्तुका चार चार निक्षेपकी, भ्रांति हुईथी । उनका समाधान- ६२ १८ ढूंढ नीजीका (१) नाम । और (२) नाम निक्षेपकी । सि. द्धांतके पाठका मेलसें, पुनः समीक्षा४२ ढूंढ नीजीकी (३) स्थापना । और (४) स्थापना निक्षे. पकी । सिद्धांतक-पाठका मेलसें, पुनः समीक्षा- ६५ ५० ढूंढनीजीका (५) द्रव्य । (६) द्रव्य निक्षेपकी । सिद्धांतके पाठका मेलसे, पुनः समीक्षा५१ ढूंढनीजीका (७) भाव । (८) भाव निक्षेपकी । सिद्धांतका मेलसे, पुनः समीक्षा५२ ढुंढनीजीके आठ विकल्पका तात्पर्य५३ स्त्रीकी मूर्तिसें—काम जागे । भगवानकी मूर्तिी-वैरा ग्य नहीं । उनकी समीक्षा ७० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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