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________________ (२२) नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका. तीर्थकर भगवानमें-भाव निक्षेप ॥ इस प्रकारसे ढूंढनी जीकी जूठी कल्पनाकी, समीक्षा३५ वस्तुका-नाम सो, नाम निक्षेप नहीं, ऐसा ढूंढक जेठम लजीका-भ्रमितपणासे, ढंढनीजीकोभी भ्रमितपणा हुवा, उनकी समक्षिा३६ भगवान्में भगवानका नाम निक्षेप । परंतु भगवान्में, भगवान्का-स्थापना निक्षेप, कैसा ? इस प्रकारसे ढूंढनी जीका, भ्रमितपणेकी समीक्षा३७ आत्मारामजी, बूटेरायजी, संस्कृतपढे हुये नहींथे, सो . मिथ्यावादी कहती है । उनकी समीक्षा- ५२ ३८ एक स्थापना निक्षेपका, स्वरूपकी मूर्तिमें, ढूंढनीजी ह. मारी पास-चार निक्षेप,मनानको तत्पर होती है । उनकी समीक्षा. ३९ एक वस्तुमें-चार निक्षेप करनेका,ढूंढनीजीने कहा । परंतु देवताका मालिक रूप वस्तुमें-इंद्र नामका, निक्षेप किये बिना, गूजरके पुत्रमें करके दिखाया। और-इंद्रमें, तीन निक्षेपही रहने दिया। उनकी समीक्षा- ५५ ४० इक्षु रसका सार-मिशरी नामकी वस्तुमें, ढूंढनीजीने एक स्थापना निक्षेपही, घटाके दिखाया, परंतु तीन निक्षेपको नहीं । उनकी समीक्षा४१ तीर्थकरमें ढूंढनीजीने--अढाइ निक्षेप, करके दिखाया । दोढ निक्षेपको नहीं । उनकी समीक्षा४२ ठाणांग सूत्रका-मूल पाठसें, चारो निक्षेपको सत्यता हमेरा तरफसे १ हेय, २ ज्ञेय, ३ और उपादेयके स्वरूपसे, दिखाई है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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