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________________ वेदव्यासके-ढूंढियोंका, विचार. ( १९३ ) या है, तोभी हम यह कहते है कि जूठा पंथका जयतो, तीनकाल मेंभी नही हो सकने वाला है ? अगर फिरभी जो निश्चय करनेकी इच्छा होतो, एक जगो मध्यकी नीयतकरके, चार मध्यस्थ पंडितोको बुलवाके, निर्णय करलो कि, तुमेरे ढूंढक पंथमे, सत्यपणा कितना है, सो मालूम हो जायगा. हमने तो यह भी - लोको के मुखसे, सुनाथा कि-सोहनलालको जब साधु, श्रावकोंने मिलकर पूज्य पदवी दिई, तब लेख करा लियाथा कि, पूजेरोंकी साथ चर्चा करनेको जावोंगे, तब तुमेरी पूज्य पदवी हम न रहनेदेंगे, सो तेरे लेख से भी यही मालूम होता है कि, यह भी बात सत्यही होगी ? क्योंकि नाभाकी चर्चा के समयमें सोहनलाल पूज्य आप नही जाता हुवा. पोते चेलेको भेजा अथवा, तुमेरी बात - तुमही जानो, हम निश्चयसें नही कह सकते है, || और विहारीलाल आदि ढूंढियें साधुओं को, में, में, करनेवालें लिखके, बकरें बनाये है, सोभी तेरी अत्यंत उन्मत्तता ही तूने दिखाई है, इसमें केवल अनुचितपणा देखकेही लिखना पडा है, नही तो हमारा कोई भी संबंध नही है, परंतु तेरी स्त्री जातिमें तुछता कितनी आगई है ? ॥ फिर, लिखती है कि, वेदव्यास हुयें जब भी - जैनी ढूंढिये ही थे, हम पुछते है कि - तुमेरा गाममें तो घर न था, और सीममें खेत न था, तो पीछे क्या तुम ढूंढियोंने- पातालके, विलमें-वास कियाथा ? जो वेदव्यासके समय में भी तुमही थे ? लेखतो साध्वीपणेका और चलन तो चोर चंचलोंका, जूठ बोलना तो बुरा, और जूठका तो पारावार ही नही, तुमेरी गति क्या होगी ॥ ॥ फिर, शिवपुराणका - श्लोक, लिखा है-सोभी जुठा, और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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