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________________ ( १९२ ) ढूंडियोंके - पराजयका, विचार. साधुके साथका पंचम, बनाव- कि, हम संवेगी साधुको नवीन देखके, यद्वा तद्वा कहना सरु किया, छेवट निर्नामसे - संवेगीकी निंदा रूप गुप्त पत्रिकाओ - छपवाई, उनके उत्तर में वारंवार, सभा करनेका आव्हान करनेपरभी, एकभी उत्तर न छपवाया, केवल मुख से - बकवाद, भेजता रहा कि, हम सभा में आवेंगे, छेवट हमने उनके कहने परही, दो चार पंडित बुलवा के - दोचार दफे, सभा ओभी भरवाई, परंतु अपनी कोटडीसे बहार ही नही निकला, यह बनाव मेंराही अग्रेसर पणमे हुवा || ॥ इति पंचम बनाव || और प्रथम अमदावाद सहरमें - सरकारी बंधोवस्तके साथ, जेउमल ढूंढिया आदि। और वीरविजयजी संवेगी आदिके मुख्यपणे । चर्चा हुईथी, जबभी ढूंढिये भगही गयेथे | और अमृतसर सहरमें, पट्टीवाला पंडित, अमीचंद घसिटामल्लकी साथभी चर्चा हुई सुनते है, जबभी तेरे ढूंढिये, भगही गयेथे, फिर खानदेश के 'धूलिये' सहर भी, यही अमीचंद पंडितकी साथ चर्चा हुईथी, जब भी तेरे दूंढिये, भगही गयेथे ॥ तो पिछे सम्यक्क शल्योद्धारवाले महात्माके लेखको, जूठा ठहरानेवाली, तूंही जूठका पुतलारूप बनी हुई, कि सवास्ते महात्माको जूठा कलंक देती है ? और जो तूं लिखती है कि हमने तो नाभेमे ही एक चर्चा देखी है, तो हम पुछते है कि, जब पंजाबम ही, तेरे पूज्य सोहनलालकी, पांच सातबारी खराबी हुईथी, तब तूं कौनसे पहाडकी गुफा में, बैठीथी ? जो तूंने कुछ मालूम ही न रहा क्या यूंही महात्माओंको, जूठा कलंक देने से, तुमेरा पाप छुपेगा ? कभी न छुपेगा । और जो तूं लिखती है कि, नाभामे तो, पूजेरांकी ही पराजय हुई, सो भी कैसे समजेंगे, मुनिश्री वल्लभविजयजीने यथायोग्य लिखके दिखाभी दि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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