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इंडियौs - पराजयका, विचार. ( १९१ ) नेविगेरेका मतलब सुनाके - स्थानपर आ गये जब भी मैं हाजर हीथा. इति दूसरा बनाव.
|| अब तिसरा बंगीयां सहरकाभी सुनलो कि - जिहां एक मास तक, यही पांच साधुओंकी - तेरा सोहनलाल पूज्यके साथ, तकरार चलीथी, उसमें फोजदार, कलेक्टर साहेबभी, देखनेको आयें, और हृस्यार पुरका संघभी आया, और मुदतपर हाजर नहीं होनेवाले के दो, दो हजार रूपैयेकी जामीनगिरी के साथ, सरकारी' स्टांपपर' लेख लिखनेकाभी सरु करायके, यही तेरा-सोहनलालने, और उदयचंदने, रद करवाया, जबभी मैं हाजर हीथा ॥ ॥ इति तिसरा बनाव ||
॥ अव सुनलो चोथा बनाव- - अमृतसर सहरका - संवत्. १९४८ काकि, जहां सोहनलालका, और हंसविजय आदि हम चार साधुओंका, चौमासा था, उहां तेराही पूज्यने, एक दिन अपना व्याख्यानमें, आत्मारामजी महाराजजीको बकरा होम कराने का लेखका, जूठा कलंक देनेपर, सातसो सातसो इस्तिहार दिया गयाथा, और *ा हिंसा परमो धर्मः इस मथालेका लेखसे, उतर देने पर, सर्व सहरके पंडितोंसे, फिट् फिट के फटकारेसें छेवट तीन कोशका, आंटा लेके, और मुख छुपा करके भागनाही पडाथा, जभी मैं हाजर हीथा ॥
॥ इति चतुर्थ बनाव ॥
अत्र सुनलो, दक्षिण देश, अहंमद नगर में - चंपालाल ढूंढक
* अहिंसा के स्थानमें, आहिंसा, अर्थात् हिंसा मेंहिधर्म एसा-मथालाका लेख, जाहिर करवाया था.
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