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( १९४) वेदव्यासके-ढूंढियोंका, विचार. अर्थ किया है, सो भी-जूठा, जहां देखो उहां जूठ ही जूठ ॥ देखिये शिवपुराणके श्लोकोंकी हालत, और अर्थ करनेकी भी चातुरी
मुंडं मलिनवस्त्रंच, कुंडिपात्रसमन्वित । दधानं पुंजिकं हस्त चालयं ते पदे पदे ॥ २ ॥ ॥ वस्त्रयुक्तं तथा हस्तं, क्षिप्पमाणं मुखे सदा । धर्मेति व्याहरंतं तं, नमस्कृत्य स्थितं हरेः ॥ ३ ॥
अब देखिये ढूंढनीजीके श्लोककि-मुंडं, चाहिये उहां तो किया है-मुंड । पुंजिक हस्ते, चाहिये उहां तो किया है-पुंजिका हाले. ॥२॥। मुखके, स्थान-सुख ॥ ३ ॥
॥अब देखिये अर्थका हाल--पगपग देखके चलें, अर्थात् ओघेसे-कीडी आदि जंतुओंको,हटाकर-पग रख्खे । पाठक वर्ग! ऐसा कौन जैनका साधु देखाकि, जाहेर रस्ता पर, ओघेसें-पुंज पुंजके, पांउको-धरता है ? और कब एसी भगवंतने भी-आज्ञा दिई है ? कि जाहेर रस्तेपर-पुंज पुंजके, पग धरो ? क्यों कि-शास्त्रकी तो, यह आज्ञा है कि-युग प्रमाण जमीनको देखके-चलना, ( अर्थात् चार हाथ जमीन तक-निगा करके चलना ) तो पीछे यह ढूंढनी, कहांसें ढूंढके लाई कि, जाहिर रस्तेपर भी, ओघेसें-कीडी आदि जंतुओंको हटाकर, पग रख्खे ? यह क्या दया हुईके, दया मूढता? सो पाठकवर्ग ही विचार करें । ____ अब तिसरा श्लोकके, अर्थमें-देखो-मुखवत्रिका करके-ढकते हुए सदा मुखको, यहतो ठिक है, परंतु तथा शब्दसे-किसीकारण मुखपत्तीको, अलग करें तो, यह तथा शब्दका अर्थ-कैसेंहोगा? और र इहां जाहिर बातका-प्रतिपादनमें, किसीकारणका-प्रयोजनही,
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